Bikhare Bimb Aur Pushpa

Author: Girish Karnad
Translator: Padmavati Rao
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Bikhare Bimb Aur Pushpa
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गिरीश कारनाड के नाटक नैतिक धारणाओं को कई स्तरों पर विश्लेषित करते हैं। सीधे सन्देशों की स्थूल वाचालता उनके यहाँ नहीं होती। वे जो कथा-भूमि चुनते हैं वह मन-जीवन का एक जटिल वितान रचती है, जिसमें वे नैतिक रूढ़ियाँ जो हमारे लिए अभी तक तमाम सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक हिंसा का आधार बनी आती हैं, अचानक मामूली और बचकाने आग्रह-भर दिखने लगती हैं। वे हमें हमारी जड़ताओं से मुक्त करके अपने उच्चतर सत्यों की तलाश के लिए स्थान देते हैं।

इस पुस्तक में संकलित दोनों नाटक भी इसका अपवाद नहीं हैं। मोनोलॉग की शैली में लिखे ये नाटक पुन: हमें कुछ नैतिक चौराहों पर लाते हैं। एक ही चरित्र के दो चेहरों के परस्पर मुखामुखम से बुना नाटक ‘बिखरे बिम्ब’ मंजुला नायक नामक स्त्री, उसकी विकलांग बहन और पति की कहानी कहता है और ‘पुष्प’ में एक शिव-भक्त पुजारी तथा एक गणिका के माध्यम से नैतिक असमंजस की सर्जना की गई है।

दोनों नाटक एक ही कलाकार द्वारा खेले जाने के ढंग से लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें पुस्तक रूप में पढ़ना भी कम दिलचस्प नहीं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 84p
Translator Padmavati Rao
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Girish Karnad

Author: Girish Karnad

गिरीश कारनाड

1938, माथेरान, महाराष्ट्र में जन्मे गिरीश कारनाड की मातृभाषा कन्नड़ है। गणित की सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर ‘रोड्स स्कॉलर’ के रूप में ऑक्सफ़ोर्ड गए।

1963 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास में नौकरी। 1970 में ‘भाषा फ़ेलोशिप’, नौकरी से त्याग-पत्र और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत। पहला नाटक 'ययाति' 1968 में छपा और चर्चा का विषय बना। 'तुगलक' के लेखन-प्रकाशन और बहुभाषी अनुवादों-प्रदर्शनों से राष्ट्रीय स्तर के नाटककार के रूप में प्रतिष्ठा। 1971 में 'हयवदन' का प्रकाशन, अभिमंचन। 2015 में 'बलि'; 2017 में 'शादी का एलबम', 'बिखरे बिम्ब और पुष्प'; 2018 में

'टीपू सुल्तान के ख्वाब' का प्रकाशन। पूना के फ़िल्म संस्थान में प्रधानाचार्य, त्याग-पत्र और इस नए सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के प्रति दिलचस्पी। सन् 1988 से कुछ वर्ष पहले तक ‘संगीत नाटक अकादेमी’, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे।

‘संस्कार’, ‘वंशवृक्ष’, ‘काड़ू’, ‘अंकुर’, ‘निशान्त’, ‘स्वामी’ और 'गोधूलि' जैसी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं प्रशंसित फ़‍िल्मों में अभिनय-निर्देशन। 'मृच्छकटिक' पर आधारित फ़‍िल्मालेख, 'उत्सव' के लेखक-निर्देशक तथा एक लोकप्रिय दूरदर्शन धारावाहिक के महत्त्वपूर्ण अभिनेता के रूप में बहुचर्चित।

सम्मान : ‘तुगलक’ के लिए ‘संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’, 'हयवदन' के लिए ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार’, 'रक्त कल्याण' के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा साहित्य में समग्र योगदान के लिए ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

निधन : 10 जून, 2019

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