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Yadon Se Rachi Yatra : Vikalp Ki Talash-Hard Cover

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‘यादों से रची यात्रा’ विश्व में समाजवाद की प्रथम प्रयोग–भूमि रूस का यात्रा–वृत्तान्त है और विश्व के प्रथम समाजवाद के विकास और बाद में विघटन का समाजशास्त्र भी। लेकिन इस यात्रा का महत्त्व रूस तक ही सीमित नहीं है। बीसवीं सदी में रूस के समाजवादी प्रयोग का आकर्षण और प्रभाव विश्वव्यापी था। पश्चिम के संकटग्रस्त पूँजीवादी देशों के लिए रूसी समाजवाद एक सार्थक विकल्प प्रस्तुत कर एक गम्भीर चुनौती बन गया और इस कारण आत्मपरीक्षण और किसी हद तक सुधारों का प्रेरक भी। साथ ही रूस औपनिवेशिक दासता से ग्रस्त एशियाई तथा अन्य देशों के लिए अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल गैर–पूँजीवादी विकल्पों की तलाश के लिए एक विश्वसनीय प्रेरणास्रोत भी बना। इस प्रकार पश्चिम और पूर्व दोनों के प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों के लिए रूस यात्रा एक सर्जनात्मक चिन्तन यात्रा बन गई।

लेखक द्वारा अतीत का यह पुनरवलोकन जितना मौलिक है, उतना ही समसामयिक महत्त्व का भी है। यह वर्तमान सन्दर्भ में विश्वास के गहरे संकट के मूल कारणों के प्रश्न को हाशिये से केन्द्र में लाकर वैचारिक यात्रा को सकारात्मक दिशा देता है।

समाजशास्त्र के विकास में यात्रा–वृत्तान्तों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बहुत कम विचार हुआ है। ‘यादों से रची यात्रा : विकल्प की तलाश’ पुस्तक ‘यात्रा’ को समाजशास्त्रीय निरीक्षण और विवेचन से जोड़कर एक नया अर्थ देती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 247p
Price ₹325.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Puran Chandra Joshi

Author: Puran Chandra Joshi

पूरनचंद्र जोशी

जन्म : 9 मार्च, 1928; ग्राम—दिगोली, ज़िला—अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।

प्रारम्भिक शिक्षा : मॉडल स्कूल और गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, अल्मोड़ा; उच्च शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. और पीएच.डी., लखनऊ स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड सोशियोलोजी, लखनऊ विश्वविद्यालय।
भारतीय समाजशास्त्र के उच्चकोटि के अध्यापन और चिन्तन और बांग्ला भाषा में साहित्य और समाजशास्त्र को जोड़ने की दिशा में सृजन के लिए जाने–माने डी.पी. साहब से प्रेरणा पाकर ‘साहित्य की सामाजिक भूमिका’ और ‘हिन्दी साहित्य में किसान’ विषयों पर विचारोत्तेजक लेखन। युवा काल से मार्क्स से प्रेरणा पाकर ‘सामाजिक क्रान्ति’ और ‘उत्पीड़ितों के समाजशास्त्र’ की दिशा में मौलिक लेखन।
भूमिसुधार, कृषि–विकास, ग्रामीण श्रमिक हितकारी नीतियों और संचार तथा सम्प्रेषण के विकास में भूमिका के प्रश्नों पर उच्चस्तरीय कमेटियों के चेयरमैन या सदस्य के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय।
प्रमुख कृतियाँ : ‘यादों से रची यात्रा : विकल्‍प की तलाश’, ‘स्‍वप्‍न और यथार्थ : आज़ादी की आधी सदी’, ‘उत्‍तराखंड के आईने में हमारा समय’, ‘भारतीय ग्राम’, ‘परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम’, ‘आज़ादी की आधी सदी : स्वप्न और यथार्थ’, ‘अवधारणाओं का संकट’, ‘महात्मा गांधी की आर्थिक दृष्टि : जीवन्तता और प्रासंगिकता’, ‘संचार, संस्कृति और विकास’ (समाजशास्‍त्र); ‘इत्‍यादि जन’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्‍कार)। इसके अलावा अंग्रेज़ी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन।

यात्राएँ : अमेरिका, रूस, चीन, थाइलैंड आदि कई देशों की यात्राएँ।

सम्मान : समाजशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय समाजशास्त्र परिषद् द्वारा ‘लाइफ़ टाइम एचीवमेंट एवार्ड’ द्वारा सम्मानित। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कलकत्ता द्वारा ‘डी.लिट्. आनरिस कौजर’ की उपाधि से सम्मानित। हिन्दी के प्रमुख संस्थानों द्वारा हिन्दी में अर्थ और समाजशास्त्र के मौलिक शोध और लेखन के लिए पुरस्कृत।
निधन : 9 नवम्बर, 2014

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