Avadharanaon Ka Sankat

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Avadharanaon Ka Sankat
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यह निबन्ध संकलन बदलते हुए वर्तमान भारत को समझने के लिए एक नई बहुआयामी दृष्टि की खोज में पाठकों को भागीदार बनाता है। डॉ. पूरन चन्द्र जोशी के मत में यदि ‘संकट’ की अवधारणा बदलते भारत को समझने की एक मूल कुंजी है तो ‘अवधारणाओं के संकट’ के रूप में इस संकट की व्याख्या राजनीति, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के लिए जितनी प्रासंगिक है उतनी ही साहित्य, कला और संस्कृति के लिए।

लेखक अवधारणाओं के संकट की व्याख्या को पुरानी और नई अवधारणाओं के तीव्र से तीव्रतर होते हुए द्वन्द्वों तक ही सीमित नहीं रखता। लेखक की राय में, संकट को सचमुच में गम्भीर बनाती है पश्चिम से बिना किसी नीर-क्षीर विवेक के अवधारणाओं को उधार लेने की या उनकी बिना जाँच-पड़ताल के आयात करने की देश के नए बुद्धिजीवियों की प्रवृत्ति, जो उतनी ही ख़तरनाक है जितनी मृतप्राय अवधारणाओं से चिपके रहने की अन्धप्रवृत्ति। दोनों प्रवृत्तियाँ भारतीय नवजागरण की मुख्य देन ‘मानसिक स्वराज’ के लक्ष्य को नकारती हैं।

डॉ. जोशी के मत में, हम जिस संक्रान्ति काल से गुज़र रहे हैं, उसमें सांस्कृतिक नवोदय की सम्भावना और नवऔपनिवेशिक मानसिक दासता के ख़तरे एक साथ दिखाई देते हैं जो अवधारणाओं के स्वायत्त-सृजन या अन्धानुकरण के प्रश्नों से जुड़े हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1995
Edition Year 2009, Ed. 2nd
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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Author: Puran Chandra Joshi

पूरनचंद्र जोशी

जन्म : 9 मार्च, 1928; ग्राम—दिगोली, ज़िला—अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।

प्रारम्भिक शिक्षा : मॉडल स्कूल और गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, अल्मोड़ा; उच्च शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. और पीएच.डी., लखनऊ स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड सोशियोलोजी, लखनऊ विश्वविद्यालय।
भारतीय समाजशास्त्र के उच्चकोटि के अध्यापन और चिन्तन और बांग्ला भाषा में साहित्य और समाजशास्त्र को जोड़ने की दिशा में सृजन के लिए जाने–माने डी.पी. साहब से प्रेरणा पाकर ‘साहित्य की सामाजिक भूमिका’ और ‘हिन्दी साहित्य में किसान’ विषयों पर विचारोत्तेजक लेखन। युवा काल से मार्क्स से प्रेरणा पाकर ‘सामाजिक क्रान्ति’ और ‘उत्पीड़ितों के समाजशास्त्र’ की दिशा में मौलिक लेखन।
भूमिसुधार, कृषि–विकास, ग्रामीण श्रमिक हितकारी नीतियों और संचार तथा सम्प्रेषण के विकास में भूमिका के प्रश्नों पर उच्चस्तरीय कमेटियों के चेयरमैन या सदस्य के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय।
प्रमुख कृतियाँ : ‘यादों से रची यात्रा : विकल्‍प की तलाश’, ‘स्‍वप्‍न और यथार्थ : आज़ादी की आधी सदी’, ‘उत्‍तराखंड के आईने में हमारा समय’, ‘भारतीय ग्राम’, ‘परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम’, ‘आज़ादी की आधी सदी : स्वप्न और यथार्थ’, ‘अवधारणाओं का संकट’, ‘महात्मा गांधी की आर्थिक दृष्टि : जीवन्तता और प्रासंगिकता’, ‘संचार, संस्कृति और विकास’ (समाजशास्‍त्र); ‘इत्‍यादि जन’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्‍कार)। इसके अलावा अंग्रेज़ी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन।

यात्राएँ : अमेरिका, रूस, चीन, थाइलैंड आदि कई देशों की यात्राएँ।

सम्मान : समाजशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय समाजशास्त्र परिषद् द्वारा ‘लाइफ़ टाइम एचीवमेंट एवार्ड’ द्वारा सम्मानित। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कलकत्ता द्वारा ‘डी.लिट्. आनरिस कौजर’ की उपाधि से सम्मानित। हिन्दी के प्रमुख संस्थानों द्वारा हिन्दी में अर्थ और समाजशास्त्र के मौलिक शोध और लेखन के लिए पुरस्कृत।
निधन : 9 नवम्बर, 2014

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