Parivartan Aur Vikas Ke Sanskritik Ayaam

Sociology
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Parivartan Aur Vikas Ke Sanskritik Ayaam

समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक क्षेत्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. पूरनचन्द्र जोशी की यह कृति भारतीय सामाजिक परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में कुछ बुनियादी सवालों और समस्याओं पर किए गए चिन्तन का नतीजा है। चार भागों में संयोजित इस कृति में कुल पन्द्रह निबन्ध हैं, जो एक ओर आधुनिक आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन को सांस्कृतिक आयामों पर और दूसरी ओर सांस्कृतिक जगत की उभरती समस्याओं के आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं पर नया प्रकाश डालते हैं।

हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति विभिन्न दृष्टियों से मौलिक और नए ढंग का प्रयास है। एक ओर तो यह सांस्कृतिक सवालों को अर्थ, समाज और राजनीति के सवालों से जोड़कर संस्कृतिकर्मियों तथा अर्थ एवं समाजशास्त्रियों के बीच सेतुबन्धन के लिए नए विचार, अवधारणाएँ और मूलदृष्टि विचारार्थ प्रस्तुत करती है और दूसरी ओर उभरते हुए नए यथार्थ से विचार एवं व्यवहार—दोनों स्तरों पर जूझने में असमर्थ पुरानी बौद्धिक प्रणालियों, स्थापित मूलदृष्टियों और व्यवहारों की निर्मम विवेचना का भी आग्रह करती है। दूसरे शब्दों में, यह पुस्तक-संस्कृति, अर्थ और राजनीति को अलग-अलग कर खंडित रूप में नहीं, बल्कि इन तीनों के भीतरी सम्बन्धों और अन्तर्विरोधों के आधार पर समग्र रूप में समझने का आग्रह करती है।

प्रो. जोशी के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत में जो एक दोहरे समाज का उदय हुआ है, उसका मुख्य परिणाम है नवधनाढ्‌य वर्ग का उभार, जो पुराने सामन्ती वर्ग से समझौता कर सभी क्षेत्रों में प्रभुतावान होता जा रहा है और जिसका सामाजिक दर्शन, मानसिकता एवं व्यवहार गांधी और नेहरू-युग के मूल्य-मान्यताओं के पूर्णतया विरुद्ध हैं। वह पश्चिम के निर्बन्ध भोगवाद, विलासवाद और व्यक्तिवाद के साथ निरन्तर एकमेक होता जा रहा है। फलस्वरूप उसके और बहुजन समाज के बीच अलगाव ही नहीं, तनाव और संघर्ष भी विस्फोटक रूप ले रहे हैं। प्रो. जोशी सवाल उठाते हैं कि भारतीय समाज में बढ़ रहा यह तनाव और संघर्ष उसके अपकर्ष का कारण बनेगा या इसी में एक नए पुनर्जागरण की सम्भावनाएँ निहित हैं? वस्तुत: प्रो. जोशी की यह कृति पाठकों से इन प्रश्नों से वैचारिक स्तर पर ही नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी जूझने का आग्रह करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1987
Edition Year 2022, Ed 3rd
Pages 244p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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Author: Puran Chandra Joshi

पूरनचंद्र जोशी

जन्म : 9 मार्च, 1928; ग्राम—दिगोली, ज़िला—अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।

प्रारम्भिक शिक्षा : मॉडल स्कूल और गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, अल्मोड़ा; उच्च शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. और पीएच.डी., लखनऊ स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड सोशियोलोजी, लखनऊ विश्वविद्यालय।
भारतीय समाजशास्त्र के उच्चकोटि के अध्यापन और चिन्तन और बांग्ला भाषा में साहित्य और समाजशास्त्र को जोड़ने की दिशा में सृजन के लिए जाने–माने डी.पी. साहब से प्रेरणा पाकर ‘साहित्य की सामाजिक भूमिका’ और ‘हिन्दी साहित्य में किसान’ विषयों पर विचारोत्तेजक लेखन। युवा काल से मार्क्स से प्रेरणा पाकर ‘सामाजिक क्रान्ति’ और ‘उत्पीड़ितों के समाजशास्त्र’ की दिशा में मौलिक लेखन।
भूमिसुधार, कृषि–विकास, ग्रामीण श्रमिक हितकारी नीतियों और संचार तथा सम्प्रेषण के विकास में भूमिका के प्रश्नों पर उच्चस्तरीय कमेटियों के चेयरमैन या सदस्य के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय।
प्रमुख कृतियाँ : ‘यादों से रची यात्रा : विकल्‍प की तलाश’, ‘स्‍वप्‍न और यथार्थ : आज़ादी की आधी सदी’, ‘उत्‍तराखंड के आईने में हमारा समय’, ‘भारतीय ग्राम’, ‘परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम’, ‘आज़ादी की आधी सदी : स्वप्न और यथार्थ’, ‘अवधारणाओं का संकट’, ‘महात्मा गांधी की आर्थिक दृष्टि : जीवन्तता और प्रासंगिकता’, ‘संचार, संस्कृति और विकास’ (समाजशास्‍त्र); ‘इत्‍यादि जन’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्‍कार)। इसके अलावा अंग्रेज़ी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन।

यात्राएँ : अमेरिका, रूस, चीन, थाइलैंड आदि कई देशों की यात्राएँ।

सम्मान : समाजशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय समाजशास्त्र परिषद् द्वारा ‘लाइफ़ टाइम एचीवमेंट एवार्ड’ द्वारा सम्मानित। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कलकत्ता द्वारा ‘डी.लिट्. आनरिस कौजर’ की उपाधि से सम्मानित। हिन्दी के प्रमुख संस्थानों द्वारा हिन्दी में अर्थ और समाजशास्त्र के मौलिक शोध और लेखन के लिए पुरस्कृत।
निधन : 9 नवम्बर, 2014

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