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Etiyadi Jan

Edition: 2012, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Etiyadi Jan

अभिजन’ और ‘इत्यादि जन’ के बीच का अलगाव, उनके बीच की दरार नई सभ्यता की संरचना में ही निहित है। लगता है, इस अलगाव और दरार की चेतना से ही ‘अभिजन’ और ‘इत्यादि जन’ को दूर रखना इस सभ्यता की मूल प्रकृति है ताकि अभिजन के अन्दर ऐसे प्रबुद्ध तत्त्वों की निर्मिति न हो सके जो अपनी जन-विमुख ही नहीं, जन-विरोधी जीवनशैली के प्रति आत्म-पीड़ा और उत्ताप महसूस कर सकें और जन के प्रति अपने दायित्व का भी उन्हें अहसास हो सके।

सबसे अधिक चिन्ताजनक बात यह है कि उच्च और निम्न वर्गों के बीच की इस दरार के बारे में चेतना प्रसार के बदले मिथ्या चेतना प्रसार में राज्य पर दबाव डालने वाली स्थापित स्वार्थी संरचनाएँ ही नहीं, बौद्धिक और सर्जनात्मक तत्त्व भी जो समाज की आत्मा या अन्तःकरण माने जाते हैं, वे भी भागीदार नज़र आते हैं।

मिथ्या चेतना प्रसार के इस बड़े व्यापार में बहुत बड़ी भूमिका संख्या शास्त्र की है या संख्या शास्त्र की मूल प्रेरणाओं के विपरीत व्यवहार में उसे पूर्व स्थापित और नव स्थापित स्वार्थों के साँचे में ढालने की है। संख्या शास्त्र के क्रियाकलाप में बड़ी भूमिका आँकड़ों की है। आँकड़े ही वह ‘ब्रह्मास्त्र’ हैं जिनके द्वारा विपन्नों की वास्तविक स्थिति का मिथकीकरण कर उनके बुनियादी हितों पर सबसे बड़ा आघात होता है। आँकड़ों का भ्रमजाल ज़मीनी स्तर पर समर्थ अभिजन और असमर्थ ‘इत्यादि जन’ की दरार को सामने नहीं आने देता।

आँकड़ों द्वारा अँधेरे में रखे गए विकास के मूल्य-विमुख, समता-विरोधी, अमानुष और नकारात्मक पक्ष को ज़मीनी दृष्टि और अनुभव के आधार पर ये कविताएँ उजागर करती हैं। ये कविताएँ अध्ययन कक्ष के ‘एकान्त और प्रशान्त माहौल में स्मरण किए गए विचार मात्र नहीं हैं।’ न ये कवि के ‘संवेदी मन के स्वत:प्रसूत भावोद्गार मात्र हैं।’

अधिकांश कविताएँ ग्रामीण जगत् के कठोर और भयावह यथार्थ से जूझते ‘इत्यादि जनों’ से ज़मीनी स्तर पर आमने-सामने के ट्रौमा से उपजी रचनाएँ हैं। विकास (या अपविकास) का अमानुष चेहरा महज़ एक बुद्धिजीवी के दिमाग़ से उपजी अवधारणा नहीं है, यह ‘इत्यादि जनों’ की वास्तविक जीवन-स्थिति है, इसी सच्चाई पर ये रचनाएँ प्रकाश डालती हैं।

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 184p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Puran Chandra Joshi

Author: Puran Chandra Joshi

पूरनचंद्र जोशी

जन्म : 9 मार्च, 1928; ग्राम—दिगोली, ज़िला—अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।

प्रारम्भिक शिक्षा : मॉडल स्कूल और गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, अल्मोड़ा; उच्च शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स, एम.ए. और पीएच.डी., लखनऊ स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड सोशियोलोजी, लखनऊ विश्वविद्यालय।
भारतीय समाजशास्त्र के उच्चकोटि के अध्यापन और चिन्तन और बांग्ला भाषा में साहित्य और समाजशास्त्र को जोड़ने की दिशा में सृजन के लिए जाने–माने डी.पी. साहब से प्रेरणा पाकर ‘साहित्य की सामाजिक भूमिका’ और ‘हिन्दी साहित्य में किसान’ विषयों पर विचारोत्तेजक लेखन। युवा काल से मार्क्स से प्रेरणा पाकर ‘सामाजिक क्रान्ति’ और ‘उत्पीड़ितों के समाजशास्त्र’ की दिशा में मौलिक लेखन।
भूमिसुधार, कृषि–विकास, ग्रामीण श्रमिक हितकारी नीतियों और संचार तथा सम्प्रेषण के विकास में भूमिका के प्रश्नों पर उच्चस्तरीय कमेटियों के चेयरमैन या सदस्य के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय।
प्रमुख कृतियाँ : ‘यादों से रची यात्रा : विकल्‍प की तलाश’, ‘स्‍वप्‍न और यथार्थ : आज़ादी की आधी सदी’, ‘उत्‍तराखंड के आईने में हमारा समय’, ‘भारतीय ग्राम’, ‘परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम’, ‘आज़ादी की आधी सदी : स्वप्न और यथार्थ’, ‘अवधारणाओं का संकट’, ‘महात्मा गांधी की आर्थिक दृष्टि : जीवन्तता और प्रासंगिकता’, ‘संचार, संस्कृति और विकास’ (समाजशास्‍त्र); ‘इत्‍यादि जन’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्‍कार)। इसके अलावा अंग्रेज़ी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन।

यात्राएँ : अमेरिका, रूस, चीन, थाइलैंड आदि कई देशों की यात्राएँ।

सम्मान : समाजशास्त्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय समाजशास्त्र परिषद् द्वारा ‘लाइफ़ टाइम एचीवमेंट एवार्ड’ द्वारा सम्मानित। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कलकत्ता द्वारा ‘डी.लिट्. आनरिस कौजर’ की उपाधि से सम्मानित। हिन्दी के प्रमुख संस्थानों द्वारा हिन्दी में अर्थ और समाजशास्त्र के मौलिक शोध और लेखन के लिए पुरस्कृत।
निधन : 9 नवम्बर, 2014

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