Vittiya Prabandhan

वित्त भौतिक जीवन का आधार स्तम्भ है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसकी उपादेयता निर्विवाद है। वित्त जैसे अमूल्य पदार्थ का कुशलतम उपयोग वित्तीय प्रबन्ध से ही सम्भव हो सकता है। वित्तीय प्रबन्धन आज के वैश्विक परिदृश्य की आवश्यकता है। भूमंडलीकरण के दौर में अर्थव्यवस्था का खुलापन बढ़ती प्रतियोगिता का द्योतक है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वित्तीय प्रबन्धन’ आधुनिक व्यापारिक संगठनों की सम्भाव्य वित्तीय प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए लिखी गई है। पुस्तक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा देश के समस्त विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों हेतु निर्धारित पाठ्यक्रम को समाहित करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में दीर्घउत्तरीय, लघुउत्तरीय, वस्तुनिष्ठ एवं व्यावहारिक प्रश्नों का समावेश करते हुए पर्याप्त मात्रा में उदाहरणों द्वारा विषय को सरल, सुग्राह्य एवं रोचक बनाने का प्रयास किया गया है।
पुस्तक की सार्थकता के परीक्षण हेतु सुधी पाठकों वित्त विशेषज्ञों, प्रबन्ध विशेषज्ञों, छात्र-छात्राओं एवं विद्वान शिक्षकों के अमूल्य सुझावों का अहर्निश स्वागत रहेगा।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2008, Ed. 1st |
Pages | 533p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here