यह निर्विवाद सत्य है कि वित्त मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है। वित्त जैसे भौतिक पदार्थ का कुशलतम उपयोग आज के भौतिक जगत की आवश्यकता बन चुकी है। वित्त का व्यावसायिक प्रयोग उद्यमिता विकास एवं राष्ट्र की प्रगति हेतु परमावश्यक होता है। वर्तमान वैश्वीकरण, निजीकरण एवं उदारीकरण के दौर में बढ़ती गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा जहाँ हमें प्रतिस्पर्द्धा में प्रतिभाग हेतु चुनौती प्रदान करती है, वही उद्यमहीनता की दशा में सर्वनाश का मार्ग भी दिखाती है। वर्तमान अर्थव्यवस्था ‘करो या मरो’ के सिद्धान्त पर संचालित है। ‘व्यावसायिक वित्त’ के लेखन में वर्तमान वैश्विक परिवेश के अनुकूल ज्ञानार्जन हेतु प्रयास किया गया है।
पुस्तक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम को समाहित करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में दीर्घ उत्तरीय, लघु उत्तरीय, वस्तुनिष्ठ एवं व्यावहारिक प्रश्नों का समावेश करते हुए पर्याप्त मात्रा में उदाहरणों द्वारा विषय को सरल, सुग्राह्य एवं रोचक बनाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक की सार्थकता का परीक्षण, पाठकगण, छात्र, छात्राएँ वित्त एवं प्रबन्ध विशेषज्ञ तथा विद्वान शिक्षक अवश्य करेंगे।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2014, Ed. 1st |
Pages | 368p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 24.5 X 18.5 X 2 |