अरविन्द कुमार सिंह की कविताओं से गुज़रते हुए हमें एक दुर्लभ संयोग दिखाई पड़ता है। एक तरफ़ उनकी भाषा में दिनकर का ओज है और दूसरी तरफ़ नागार्जुन के यहाँ दिखाई पड़ने वाली रोज़मर्रा जीवन की हलचलें। ये हजारीबाग की पहाड़ियों का सौन्दर्य है, हरिद्वार का कुम्भ स्नान है, गाँव के मेले की बिसरी हुई यादें हैं, नदियाँ हैं, शाम हैं। प्रकृति इन कविताओं में बार-बार आती है—इसके बहुत सारे रंग उनकी कविताओं में दिखाई पड़ते हैं। दूसरी तरफ़ मज़लूमों, किसानों, मज़दूरों की पीड़ा भी उनकी कविताओं में मुखर हुई है। ये कविताएँ हमारे समय, समाज, धरती और हमारे आसपास के लोगों की आकांक्षाओं, पीड़ाओं, भावनाओं का आईना बनती हैं। इनमें हम अपने समय की धड़कन को सुन सकते हैं। इनमें सौन्दर्य है, प्रकृति है, धूमिल गाँव हैं, नदियाँ हैं और उनके बीच मनुष्य का श्रम भी है और उसका समूचा सौन्दर्य भी है—जो इस धरती को सुन्दर बनाता है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2025 |
Edition Year | 2025, Ed. 1st |
Pages | 150p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |