Tap Ke Taye Huye Din

Author: Trilochan
Edition: 2019, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹250.75 Regular Price ₹295.00
15% Off
In stock
SKU
Tap Ke Taye Huye Din
- +
Share:

त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील हिन्दी कविता के दूसरे दौर के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवियों में से हैं। इस कविता के पहले दौर के कवियों—मसलन पंत, निराला, नरेन्द्र, सुमन आदि ने छायावादी कविता के अन्तर्विरोधों को परिणति तक पहुँचाकर उसे यथार्थवादी भूमि पर उतार दिया था। प्रगतिशील कविता के दूसरे दौर के कवि मसलन—केदार, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन और मुक्तिबोध ने हिन्दी कविता को यथार्थ की भूमि पर निरन्तर विकसित किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि यही यथार्थवादी कविता छायावादोत्तर हिन्दी कविता में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धारा है। इस धारा में त्रिलोचन का योगदान अपरिमित और ऐतिहासिक है।

त्रिलोचन जीवन-संघर्ष और जीवन-सौन्दर्य के अप्रतिम कवि हैं। उनकी कविता में चित्रित संघर्ष और सौन्दर्य केवल उनका नहीं, बल्कि उस हिन्दीभाषी जाति का संघर्ष और सौन्दर्य है, जिसे देखने और पहचानने की क्षमता हिन्दी कविता के आधुनिकतावादी माहौल में लगातार खोती गई है। त्रिलोचन ने न केवल उसे देखा और पहचाना, बल्कि उससे वैसा आन्तरिक लगाव स्थापित किया, जैसा कविता में तुलसीदास और निराला तथा गद्य में प्रेमचन्द जैसे कथाकारों में ही देखने को मिलता है। प्रगतिशील कवि त्रिलोचन ने प्रचलित अर्थ में राजनीतिक कविताएँ बहुत कम लिखी हैं पर राजनीति की मूल्यपरक गहरी चेतना निस्सन्देह उनकी कविता को सदा अनुप्राणित करती रही। उनकी कविता इस बात का प्रमाण है कि प्रगतिशील कविता कोई संकीर्ण और एकपक्षीय कविता नहीं, बल्कि ऐसी कविता है जिसमें जीवन की तरह ही व्यापकता और विविधता है, प्रकृति की तरह ही रंग-बिरंगापन है।

त्रिलोचन ने ग़ज़ल, रुबाई, सॉनेट जैसे हिन्दीतर कविता के क्लासिकीय काव्य-रूपों में भी कविता रची है और हिन्दी के नए-पुराने काव्य-रूपों तथा छन्दों में भी। उनकी विशेषता यह है कि वे काव्य-रूप की स्थिरता और सार-तत्त्व की गतिशीलता के द्वन्द्व से कविता में एक ऐसे वेग और शक्ति की सृष्टि करते हैं जिनकी मिसाल हिन्दी कविता में केवल ‘निराला’ में सुलभ है। क्लासिकीय अनुशासन और आधुनिक स्वच्छन्दता त्रिलोचन की अपनी पहचान है। तुलसीदास ने संस्कृत शब्दों के योग से अवधी भाषा को उन्नत किया था, त्रिलोचन ने अवधी भाषा के योग से खड़ी बोली को रस से भर दिया है। उनकी हीरे की तरह कठोर और दीप्तिपूर्ण काव्य-भाषा अवधी की देशी खांड-जैसी मिठास से युक्त है। ताज्जुब की बात नहीं कि प्रगतिशील हिन्दी कवियों की नवीनतम पीढ़ी त्रिलोचन जैसे कवियों के दाय को समझने और आत्मसात् करने की दिशा में ललक और लगन के साथ बढ़ रही है।

—नन्दकिशोर नवल

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 88p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Tap Ke Taye Huye Din
Your Rating
Trilochan

Author: Trilochan

त्रिलोचन

जन्म-तिथि : 20 अगस्त, 1917; गाँव—कटघरापट्टी-चिरानीपट्टी, ज़िला—सुल्तानपुर (उ.प्र.)।

शिक्षा : अरबी-फ़ारसी साहित्य रत्न, शास्त्री, अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. (पूर्वार्द्ध), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

जीविका के लिए बरसों पत्रकारिता और अध्यापन-कार्य। ‘हंस’, ‘कहानी’, ‘वानर , ‘प्रदीप’, ‘चित्ररेखा’, ‘आज’, ‘समाज’ और ‘जनवार्ता’ आदि पत्रिकाओं में सम्पादन-कार्य।

1952-53 में गणेशराय नेशनल इंटर कॉलेज, जौनपुर में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता रहे। 1967-72 के दौरान वाराणसी में विदेशी छात्रों को हिन्दी, संस्कृत और उर्दू की व्यावहारिक शिक्षा प्रदान की। उर्दू विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय की द्वैभाषिक कोश (उर्दू-हिन्दी) परियोजना में कार्य (1978-84)। ‘मुक्तिबोध सृजनपीठ’, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) के अध्यक्ष रहे।

अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, जिनमें प्रमुख हैं : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, हिन्दी अकादमी का ‘शलाका सम्मान’, ‘भवानीप्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार’, ‘सुलभ साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘भारतीय भाषा परिषद सम्मान’ (कोलकाता), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘महात्मा गांधी सम्मान’ आदि।

प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘धरती’, ‘गुलाब और बुलबुल’, ‘दिगन्त’, ‘ताप के ताए हुए दिन’, ‘शब्द’, ‘उस जनपद का कवि हूँ’, ‘अरघान’, ‘तुम्हें सौंपता हूँ’, ‘अनकहनी भी कुछ कहनी है’, ‘फूल नाम है एक’, ‘सबका अपना आकाश’, ‘चैती’, ‘अमोला’, ‘मेरा घर’, ‘जीने की कला’; कहानी-संग्रह—‘देशकाल’; डायरी—‘रोजनामचा’; आलोचना—‘काव्य और अर्थबोध’; सम्पादन—‘मुक्तिबोध की कविताएँ’।

अन्य : ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ : सं.—केदारनाथ सिंह; ‘बात मेरी कविता’ (त्रिलोचन की चुनी हुई अपनी कविताएँ); ‘साक्षात् त्रिलोचन’ (लम्बी बातचीत) : दिविक रमेश, कमलाकान्त द्विवेदी; ‘मेरे साक्षात्कार’: सं.—श्याम सुशील; ‘त्रिलोचन के बारे में’ : सं.—गोविन्द प्रसाद; ‘त्रिलोचन संचयिता’ : सं.—ध्रुव शुक्ल।

निधन : 09 दिसम्बर, 2007

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top