शेखर : एक जीवनी’ अज्ञेय का सबसे अधिक पढ़ा गया उपन्यास; हिन्दी की एक ऐसी कथा-कृति जिसे हर पीढ़ी का पाठक जरूरी समझता आया है और जिससे गुजरने के बाद वह जीवन की एक भरी-पूरी छलछलाती नदी में डूबकर निकल आने जैसा अनुभव करता है। उपन्यास का नायक शेखर स्वयं अज्ञेय हैं अथवा कोई और व्यक्ति, यह हमेशा कौतूहल का विषय रहा है। कुछ लोग इसे पूरी तरह उनकी आत्मकथात्मक कृति मानते हैं, लेकिन स्वयं अज्ञेय का कहना है कि यह 'आत्म-जीवनी’ नहीं है। वे कहते हैं कि 'आत्म-घटित’ ही आत्मानुभूति नहीं होता, पर-घटित भी आत्मानुभूत हो सकता है यदि हममें सामथ्र्य है कि हम उसके प्रति खुले रह सकें।...शेखर में मेरापन कुछ अधिक है।’ लेकिन यह कथा ऐसी नहीं है कि इसे 'एक आदमी की निजू बात’ कहकर उड़ाया जा सके। अज्ञेय इसे अपने युग और समाज का प्रतिबिम्ब मानते हैं। इसमें 'मेरा समाज और मेरा युग बोलता है,...वह मेरे और शेखर के युग का प्रतीक है।’ बहुआयामी और संश्लिष्ट चरित्रों के साथ अपने समय-समाज और उनके बीच अपनी अस्मिता को आकार देते व्यक्ति की वेदना को तीव्र और आवेगमयी भावात्मकता के साथ अंकित करते इस उपन्यास के नायक शेखर के बारे में अज्ञेय की टिप्पणी है : 'शेखर कोई बड़ा आदमी नहीं है, वह अच्छा भी आदमी नहीं है। लेकिन वह मानवता के संचित अनुभव के प्रकाश में ईमानदारी से अपने को पहचानने की कोशिश कर रहा है।...उसके साथ चलकर आप पाएँगे कि आपके भीतर भी कहीं पर एक शेखर है जो...जागरूक, स्वतंत्र और ईमानदार है, घोर ईमानदार।’
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2023, Ed. 9th |
Pages | 240p |
Price | ₹350.00 |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |