इस्मत चुग़ताई, रशीद जहाँ, क़ुर्रतुल-ऐन-हैदर, जीलानी बानो की रिवायतों को आगे बढ़ानेवाली नूर ज़हीर हमारे समय के उन विशिष्ट कथाकारों में से हैं जिन्होंने मज़हबी कठमुल्लेपन और पुरुषवादी मानसिकता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलन्द की। उनके उपन्यास 'माइ गॉड इज़ ए वुमन' (जो हिन्दी में 'अपना ख़ुदा एक औरत' नाम से प्रकाशित हुआ है) में मज़हबी संकीर्णता के ख़िलाफ़ स्त्री-मुक्ति की कई छवियाँ देखी जा सकती हैं। उनकी कहानियों के स्त्री-पात्र मज़हबी संकीर्णताओं के शिकंजों से बाहर निकलकर अपनी मुक्ति के रास्ते तलाश करते हुए दिखाई देते हैं।
नूर ज़हीर की कहानियों की एक ख़ूबी यह है कि वे पुरुषप्रधान समाज में स्त्री की स्थितियों को मानवीय करुणा के साथ व्यक्त करती हैं। वे ऐसे स्त्री-पात्रों की रचना करती हैं जो पुरुषप्रधान समाज द्वारा निर्धारित रूढ़ियों और रिवायतों के ख़िलाफ़ उठकर अपनी अस्मिता की तलाश करती हैं। नूर ज़हीर की कहानियाँ पुरुष मानसिकता के सख़्त शिकंजे के ही नहीं, सख़्त मज़हबी शिकंजों के ख़िलाफ़ भी अपनी आवाज़ बुलन्द करती नज़र आती हैं।
नूर ज़हीर अपनी कहानियों में स्थितियों, पात्रों की मनोदशाओं और कहानी के ब्योरों का बेहद मार्मिक वर्णन करती हैं। वे बहुत छोटे-छोटे दृश्यों और संवादों के ज़रिए कहानी का ताना-बाना इस तरह बुनती हैं कि पाठक उनसे सहज ही जुड़ाव महसूस करता है।
—हरियश राय
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2020 |
Edition Year | 2020, 1st Ed. |
Pages | 159p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |