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Satmi Ke Bachche

Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Satmi Ke Bachche

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‘सतमी के बच्चे’ राहुल सांकृत्यायन का प्रसिद्ध कहानी संकलन है। इस संग्रह की प्रत्येक कहानी अपनी करुणा और यथार्थ चित्रण से पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ती है।

राहुल सांकृत्यायन ने विचार और शोध के क्षेत्र में जितनी गहराई में जाकर काम किया है, उतनी ही गहराई उनके कथा-साहित्य में भी दिखाई देती है। मानव-मन की पीड़ा और साधनहीन विपन्न वर्ग की कठोर जीवन-स्थितियों को उन्होंने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से देखा और उतनी ही बेलाग भाषा में अंकित किया।

सरल भाषा, गहरा व्यंग्य, पात्रों के साथ आत्मीय संलग्नता और कथा-स्थितियों के माध्यम से समूचे समाज और सभ्यता का विवेचन उनके कथा-कौशल का अभिन्न अंग है।

इस संग्रह में शामिल कहानियों में ग्रामीण जीवन का जैसा चित्रण हुआ है, वैसा प्रेमचंद के अलावा शायद ही किसी ने किया हो।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 104p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Rahul Sankrityayan

Author: Rahul Sankrityayan

राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पन्दहा गाँव में 9 अप्रैल, 1893 को हुआ था। मूर्धन्य और अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान राहुल सांकृत्यायन साधु, बौद्ध भिक्षु थे, यायावर थे, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे, नाटककार और कथाकार थे। वे जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय नेता भी थे।

उन्होंने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रंथों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण भी किया।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘वोल्गा से गंगा’, ‘घुमक्कड़-शास्त्र’, ‘मेरी तिब्बत यात्रा’, ‘मेरी यूरोप यात्रा’, ‘किन्नर देश में’, ‘मध्य एसिया का इतिहास’, ‘मानव समाज’, ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’, ‘दर्शन दिग्दर्शन’, ‘राहुल वाङ्मय’।

उन्हें 1958 में ‘मध्य एसिया का इतिहास’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया। भारत सरकार ने 1963 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया।

14 अप्रैल, 1963 को उनका निधन हुआ।

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