तिब्बतवालों से मैं कुछ ज्यादा निश्चिन्त था, क्योंकि मैं जानता था कि वह चार-पाँच सौ बरस पुरानी दुनिया में रह रहे हैं। सिर से हजारों मन का बोझ उतरा-सा गया मालूम हुआ। शायद प्राकृतिक सौन्दर्य कुछ और पीछे ही से शुरू हो गया था, लेकिन अब तक मेरी आँखें उसके लिए बन्द-सी थीं, अब मैं आँख भर के पार्वत्य-सौन्दर्य की ओर देखता था।
—इसी पुस्तक से

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2021
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 216p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Rahul Sankrityayan

Author: Rahul Sankrityayan

राहुल सांकृत्यायन

जन्म : 9 अप्रैल, 1893

मूर्धन्य और अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान राहुल सांकृत्यायन साधु थे, बौद्ध भिक्षु थे, यायावर थे, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे, नाटककार और कथाकार थे और थे जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय नेता। उनके अनन्य मित्र भदंत आनन्द कौसल्यायन के शब्दों में, ''उन्होंने जब जो कुछ सोचा, जब जो कुछ माना, वही लिखा, निर्भय होकर लिखा। चिन्तन के स्तर पर राहुल जी कभी भी न किसी साम्प्रदायिक विचार-सरणी से बँधे रहे और न संगठित-सरणी से। वह 'साधु न चले जमात' जाति के साधु पुरुष थे।

राहुल जी ने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण भी किया।

निधन : अप्रैल, 1963

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