Manav Samaz

Editor: Mahadev Saha
Edition: 2016, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Manav Samaz
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मानव समाज से अलग नहीं रह सकता था, अलग रहने पर उसे भाषा से ही नहीं, चिन्तन से भी नाता तोड़ना पड़ता, क्योंकि चिन्तन ध्वनिरहित शब्द है। मनुष्य की हर एक गति पर समाज की छाप है। बचपन से ही समाज के विधि-निषेधों को हम माँ के दूध के साथ पीते हैं, इसलिए हम उनमें से अधिकांश को बंधन नहीं भूषण के तौर पर ग्रहण करते हैं, किन्तु वह हमारे कायिक, वाचिक कर्मों पर पग-पग पर अपनी व्यवस्था देते हैं, यह उस वक़्त मालूम हो जाता है, जब हम किसी को उनका उल्लंघन करते देख उसे असभ्य कह डालते हैं।

सीप में जैसे सीप प्राणी का विकास होता है, उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है। मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा अपने परिवार, ठाठ-बाट, पाठशाला, क्रीड़ा तथा क्रिया के क्षेत्र में और समाज द्वारा विकसित भाषा को लेकर होती है।

‘मानव समाज’ हिन्दी में अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। हिन्दी और बांग्ला पाठकों के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 251
Translator Not Selected
Editor Mahadev Saha
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Rahul Sankrityayan

Author: Rahul Sankrityayan

राहुल सांकृत्यायन

जन्म : 9 अप्रैल, 1893

मूर्धन्य और अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान राहुल सांकृत्यायन साधु थे, बौद्ध भिक्षु थे, यायावर थे, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे, नाटककार और कथाकार थे और थे जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय नेता। उनके अनन्य मित्र भदंत आनन्द कौसल्यायन के शब्दों में, ''उन्होंने जब जो कुछ सोचा, जब जो कुछ माना, वही लिखा, निर्भय होकर लिखा। चिन्तन के स्तर पर राहुल जी कभी भी न किसी साम्प्रदायिक विचार-सरणी से बँधे रहे और न संगठित-सरणी से। वह 'साधु न चले जमात' जाति के साधु पुरुष थे।

राहुल जी ने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण भी किया।

निधन : अप्रैल, 1963

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