Sanskriti Sangam

Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Sanskriti Sangam
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इस पुस्तक में आचार्य क्षितिमोहन सेन के अद्भुत पाण्डित्य और तीक्ष्ण दृष्टि के साथ मानव-प्रेम और सहज भाव का परिचय मिलता है। पुस्तक में केवल शुद्ध पाण्डित्य की ज्ञान-चर्चा नहीं हैं, इसमें 'मनुष्य' के प्रति आचार्य सेन के अटूट विश्वास और दृढ़ निष्ठा का परिचय मिलता है। साथ ही अपने देश की उस महती प्रतिभा का साक्षात्कार पायेंगे जो विषम परिस्थितियों में अपना रास्ता निकाल लेती है और अनैक्य के भीतर ऐक्य का सन्देश खोज लेती है। पुराने युग से कितनी ही मानव-मण्डलियाँ इस देश में अपने आचार-विचारों और संस्कारों को लेकर आयी हैं, कुछ देर तक एक-दूसरे के प्रति शंकालु भी रही हैं पर अन्त तक भारतीय प्रतिभा ने नानात्व के भीतर से ऐक्य-सूत्र खोज निकाला है। सन्तों-महात्माओं की सहज दृष्टि प्रत्येक युग में बाह्य जंजाल के नीचे गुप्त रूप से प्रवहमान् प्राणधारा का सन्धान पाती रही है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Acharya Kshiti Mohan Sen
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 152p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Acharya Kshiti Mohan Sen

आचार्य क्षितिमोहन सेन

आचार्य क्षितिमोहन सेन का जन्म काशी में 2 दिसम्बर 1880 को हुआ, उनका परिवार विद्या और चिकित्सा दोनों के लिए प्रसिद्ध था। उन्हें बाल्यकाल में महामहोपाध्याय पं. सुधाकर द्विवेदी और महामहोपाध्याय पं. गंगाधर शास्त्री जैसे पण्डितों का सत्संग प्राप्त हो गया। आगे चलकर वे कविगुरु रवीन्द्रनाथ के सम्पर्क में आये और उनके अत्यन्त अन्तरंगों में हो गये। शान्तिनिकेतन में वे दीर्घकाल तक अध्यापक रहे और अन्त में वहाँ के विद्या-भवन के अध्यक्ष थे। विश्वभारती युनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग के उपाचार्य के पद पर कार्यरत रहे।

साहित्य सेवा : कबीर (1910-1911), भारतीय मध्यकालीन साधना धारा, भारतीय संस्कृति, युग-गुरु राममोहन, भारत में जातिगत भेदभाव, हिंदू संस्कृति का स्वरूप, भारतीय हिंदू मुस्लिम एकता साधना, प्राचीन भारतीय महिलाएं, साधक और साधना आदि।

निधन : 12 मार्च, 1960

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