Samkaleen Hindi Sahitya : Vividh Paridrishya

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Samkaleen Hindi Sahitya : Vividh Paridrishya

समकालीन हिन्दी साहित्य का आलोचना से सबसे निकट का सम्बन्ध है। वह आलोचना को जितना अभिप्रेरित करता है, उतना ही उसका उपजीव्य होता है। समध्कालीन भूमि पर अपना परीक्षण करके तब आलोचना परम्परा की ओर दृष्टि डालती है, और उससे अपना सम्बन्ध तलाश करती है। सिर्फ़ प्राचीन-मध्यकालीन साहित्य पर लिखकर पंडित हुआ जा सकता है, आलोचक नहीं। आलोचक एक तरह से, एलियट के अर्थ में, समूचे साहित्य का सहवर्तित्व प्रमाणित करता है। इसके लिए अपने समकालीन साहित्य से उसकी अन्तरक्रिया और कृतकृत्यता बुनियादी महत्त्व की होती है।

बीसवीं अर्द्धशताब्दी के आसपास हिन्दी में नई कविता और नवलेखन का जो उत्थान हुआ, उसकी पहली व्यवस्थित आरम्भिक समीक्षा थी ‘हिन्दी नव-लेखन’ जो 1960 में प्रकाशित हुई। स्वतंत्र देश की पहली रचनात्मक अभिव्यक्ति का किसी क़दर सहानुभूतिपूर्ण और परिचयात्मक अध्ययन यहाँ पहली बार हुआ था। फिर अज्ञेय, उनके समवर्ती तथा अज्ञेयोत्तर कृतित्व की वैसे ही नए सन्दर्भों में व्याख्या आलोचक रामस्वरूप चतुर्वेदी के कृतित्व का एक मुख्य अंग बन गई। प्रस्तुत कृति में ‘हिन्दी नवलेखन’ से आरम्भ करके आलोचक की दृष्टि समकालीन साहित्य के प्रति कैसे परिष्कृत होती गई, इसका बड़ा सटीक अध्ययन है। फिर यह दृष्टि कैसे समूची साहित्य-परम्परा को देखती है, वह समूचा परिदृश्य सामने आता है। इस अर्थ में आधुनिक आलोचना की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है—‘समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध परिदृश्य’।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1995
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 237p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Ramswaroop Chaturvedi

Author: Ramswaroop Chaturvedi

रामस्वरूप चतुर्वेदी

जन्म : 1931 में कानपुर में। आरम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव कछपुरा (आगरा) में हुई। बी.ए. क्राइस्ट चर्च, कानपुर से। एम.ए. की उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1952 में। वहीं हिन्दी विभाग में अध्यापन (1954-1991)। डी.फ़िल की उपाधि 1958 में मिली, डी.लिट. की 1972 में।

आरम्भिक समीक्षापरक निबन्ध 1950 में प्रकाशित हुए। नई प्रवृत्तियों से सम्‍बद्ध पत्रिकाओं का सम्पादन किया : ‘नए पत्ते’ (1952), ‘नई कविता’ (1954), ‘क ख ग’ (1963)। शोध-त्रैमासिक ‘हिन्दी अनुशीलन’ का सम्पादन (1960-1984)।

प्रकाशन : ‘शरत् के नारी पात्र’ (1955), ‘हिन्दी साहित्य कोश’ (सहयोग में सम्‍पादित—प्रथम भाग 1958, द्वितीय भाग 1963), ‘हिन्दी नवलेखन’ (1960), ‘आगरा ज़िले की बोली’ (1961), ‘भाषा और संवेदना’ (1964), ‘अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या’ (1968), ‘हिन्दी साहित्य की अधुनातन प्रवृत्तियाँ’ (1969), ‘कामायनी का पुनर्मूल्यांकन’ (1970), ‘मध्यकालीन हिन्दी काव्यभाषा’ (1974), ‘नई कविताएँ : एक साक्ष्य’ (1976), ‘कविता-यात्रा’ (1976), ‘गद्य की सत्ता’ (1977), ‘सर्जन और भाषिक संरचना’ (1980), ‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’ (1982), ‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’ (1986), ‘काव्यभाषा पर तीन निबन्ध’ (1989), ‘प्रसाद-निराला-अज्ञेय’ (1989), ‘साहित्य के नए दायित्व’ (1991), ‘कविता का पक्ष’ (1994), ‘समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध परिदृश्य’ (1995), ‘हिन्दी गद्य : विन्यास और विकास’ (1996), ‘तारसप्तक से गद्यकविता’ (1997), ‘भारत और पश्चिम : संस्कृति के अस्थिर सन्दर्भ’ (1999), ‘आचार्य रामचन्‍द्र शुक्ल—आलोचना का अर्थ : अर्थ की आलोचना’ (2001), ‘भक्ति काव्य-यात्रा’ (2003)।

संयुक्त संस्करण : ‘भाषा-संवेदना और सर्जन’ (1996), ‘आधुनिक कविता-यात्रा’ (1998)।

सन् 1996 में ‘व्यास सम्मान’ से सम्‍मानित।

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