Bhakti Kavya Yatra

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Bhakti Kavya Yatra
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भक्ति काव्य को हिंदी कविता का स्वर्ण युग कहने का सीधा तात्पर्य होता है कि यहाँ काव्य की रचनात्मक क्षमता अपने श्रेष्ठतम रूप में है। पर इस काव्य का एक अन्य स्तर पर जो वैशिष्ट्य है, उसकी ओर ध्यान प्रायः नहीं जाता। भक्ति-काव्य हिंदी समाज की उदारतम चेतना का दस्तावेज है। कबीर-जायसी-सूर-तुलसी-मीराँ इस युग के श्रेष्ठ कवि हैं, यह मान्यता सर्वस्वीकृत है। इसका निहितार्थ है कि यहाँ हिंदू—मुसलमान, ब्राह्मण-दलित, पुरुष-स्त्री—समाज के सभी वर्गों का यह साझा रचना-कर्म है, भले वे वर्ग सामान्य तौर पर समाज में कहीं अपना अलगाव बनाए रखते हों। यों, हिंदी जीवन की व्यापक समरसता का अन्यतम प्रमाण है हिंदी भक्ति-काव्य ! फिर यह भी संयोग से कुछ अधिक है कि ये पाँचों कवि मिल कर समूचे हिंदी प्रदेश के विविध जनपदों अथवा बोली-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं—पूर्व में भोजपुरी (कबीर) से लेकर अवधी (जायसी-तुलसी)—ब्रज (सूर-तुलसी) होते हुए पश्चिम में राजस्थानी (मीराँबाई) तक।

आधुनिक युग में भारतेंदु के बाद, निराला से लेकर बच्चन, दिनकर, अज्ञेय, शमशेर, लक्ष्मीकांत वर्मा—विद्रोह, जवानी, सौंदर्य और अनर्थक के कवि—अपने उत्तर-काव्य में भक्ति की ओर उन्मुख हैं। ये भक्त कवि नहीं, पर भक्ति-काव्य इन्होंने लिखा है। हिंदी भक्ति-काव्य-परंपरा को समझने के लिए इस समूचे प्रवाह को एकबारगी देखना उपयुक्त होगा। इस दृष्टि से अध्ययन का अंतिम अध्याय आधुनिक कवियों के भक्ति-काव्य पर केन्द्रित किया गया है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल भक्ति काव्य के शीर्षस्थ समीक्षक हैं। फिर डॉ. रामविलास शर्मा का थिराया उत्तरकालीन दृष्टिकोण है तुलसी तथा अन्य भक्त कवियों के विवेचन में। अब पढ़िए रामस्वरूप चतुर्वेदी को जिनके आधुनिक भाव-बोध में समूची भक्ति-काव्य परंपरा नये सिरे से जीवंत हो उठी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 101p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Ramswaroop Chaturvedi

Author: Ramswaroop Chaturvedi

रामस्वरूप चतुर्वेदी

जन्म : 1931 में कानपुर में। आरम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव कछपुरा (आगरा) में हुई। बी.ए. क्राइस्ट चर्च, कानपुर से। एम.ए. की उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1952 में। वहीं हिन्दी विभाग में अध्यापन (1954-1991)। डी.फ़िल की उपाधि 1958 में मिली, डी.लिट. की 1972 में।

आरम्भिक समीक्षापरक निबन्ध 1950 में प्रकाशित हुए। नई प्रवृत्तियों से सम्‍बद्ध पत्रिकाओं का सम्पादन किया : ‘नए पत्ते’ (1952), ‘नई कविता’ (1954), ‘क ख ग’ (1963)। शोध-त्रैमासिक ‘हिन्दी अनुशीलन’ का सम्पादन (1960-1984)।

प्रकाशन : ‘शरत् के नारी पात्र’ (1955), ‘हिन्दी साहित्य कोश’ (सहयोग में सम्‍पादित—प्रथम भाग 1958, द्वितीय भाग 1963), ‘हिन्दी नवलेखन’ (1960), ‘आगरा ज़िले की बोली’ (1961), ‘भाषा और संवेदना’ (1964), ‘अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या’ (1968), ‘हिन्दी साहित्य की अधुनातन प्रवृत्तियाँ’ (1969), ‘कामायनी का पुनर्मूल्यांकन’ (1970), ‘मध्यकालीन हिन्दी काव्यभाषा’ (1974), ‘नई कविताएँ : एक साक्ष्य’ (1976), ‘कविता-यात्रा’ (1976), ‘गद्य की सत्ता’ (1977), ‘सर्जन और भाषिक संरचना’ (1980), ‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’ (1982), ‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’ (1986), ‘काव्यभाषा पर तीन निबन्ध’ (1989), ‘प्रसाद-निराला-अज्ञेय’ (1989), ‘साहित्य के नए दायित्व’ (1991), ‘कविता का पक्ष’ (1994), ‘समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध परिदृश्य’ (1995), ‘हिन्दी गद्य : विन्यास और विकास’ (1996), ‘तारसप्तक से गद्यकविता’ (1997), ‘भारत और पश्चिम : संस्कृति के अस्थिर सन्दर्भ’ (1999), ‘आचार्य रामचन्‍द्र शुक्ल—आलोचना का अर्थ : अर्थ की आलोचना’ (2001), ‘भक्ति काव्य-यात्रा’ (2003)।

संयुक्त संस्करण : ‘भाषा-संवेदना और सर्जन’ (1996), ‘आधुनिक कविता-यात्रा’ (1998)।

सन् 1996 में ‘व्यास सम्मान’ से सम्‍मानित।

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