Rang Arang-Hard Cover

ISBN: 9788126722112
Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹760.75 Regular Price ₹895.00
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‘रंग अरंग’ में भारतीय रंगमंच की विविधवर्णी छवियाँ अंकित हैं। इन छवियों को सहेजते हुए रंग-चिंतक हृषीकेश सुलभ अपने समय के सरोकारों के साथ शताब्दियों पुरानी रंगपरम्परा के गह्वरों में उतरते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार की रंग-अवधारणाओं से टकराते हैं और अपने समय का रंगविमर्श रचते हैं। ‘रंग अरंग’ के आलेखों में एक ओर संस्कृत रंगमंच के बाद भाषा नाटकों के उदयकाल के लक्षणग्रन्थ वर्णरत्नाकर और धूर्त्तसमागम, पारिजातहरण और गोरक्षविजय जैसे नाटकों का गहन विश्लेषण है, तो दूसरी ओर प्रोबीर गुहा, अरविन्द गौड़ और सुबोध पटनायक जैसे रंगकर्मियों के माध्यम से आज के रंगकर्म की संघर्षशील धारा की विवेचनात्मक पड़ताल है। इनमें आज़ादी के समय अपने नाटकों से गाँवों में अलख जगानेवाले विस्मृत रसूल मियाँ के स्मरण के साथ-साथ हबीब तनवीर, श्यामानन्द जालान, विजय तेंडुलकर, नेमिचन्द्र जैन, जगदीश चन्द्र माथुर, देवेन्द्र राज अंकुर आदि की रचनात्मकता से गुज़रने का विनम्र प्रयास है,...और हैं सत्ता और सत्ता के पहरुओं से संस्कृति की टकराहट की ध्वनियाँ। प्रस्तुतियों में नवाचार के बहाने नाटक की समग्र प्रभावान्विति और रंगप्रविधियों के विश्लेषण से रंगआस्वादन के लिए राहों की खोज रंग अरंग के आलेखों की विशिष्टता है।   

हृषीकेश सुलभ उन विरल लोगों में हैं जो साहित्य और रंगमंच के साथ-साथ कला की विविध सरणियों में अपनी आवाजाही के लिए जाने जाते हैं। रंग अरंग उनकी इसी आवाजाही का साक्ष्य है। वे कथाकार, नाटककार और रंग-चिंतक तो हैं ही, रंगमंच, संगीत, नृत्य, फ़िल्म और चित्रकला के रसिक भी हैं। उनकी रसिकता रसज्ञता से परे जाकर रंगमंच और अन्य कलाओं की दीप्ति से हमारा साक्षात्कार करवाती है। ֹ‘रंग अरंग’ में रंगमंच के अलावा और भी बहुत कुछ समाहित है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 256p
Price ₹895.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Hrishikesh Sulabh

Author: Hrishikesh Sulabh

हृषीकेश सुलभ

कथाकार, नाटककार, रंग-समीक्षक हृषीकेश सुलभ का जन्म 15 फरवरी, 1955 को बिहार के छपरा (अब सीवान) जनपद के लहेजी नामक गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा गाँव में हुई और अपने गाँव के रंगमंच से ही आपने रंग-संस्कार ग्रहण किया। आपकी कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित और अंग्रेज़ी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं।

आप रंगमंच से गहरे जुड़ाव के कारण कथा-लेखन के साथ-साथ नाट्य-लेखन की ओर उन्मुख हुए और भिखारी ठाकुर की प्रसिद्ध नाट्यशैली बिदेसिया की रंगयुक्तियों का आधुनिक हिन्दी रंगमंच के लिए पहली बार अपने नाट्यालेखों में सृजनात्मक प्रयोग किया। विगत कुछ वर्षों से आप कथादेश मासिक में रंगमंच पर नियमित लेखन कर रहे हैं।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं : ‘अग्न‍िलीक’ (उपन्यास); ‘तूती की आवाज़’ (‘पथरकट’, ‘वधस्थल से छलाँग’ और ‘बँधा है काल’ एक जिल्द में शामिल); ‘वसंत के हत्यारे’, ‘हलन्त’ (कहानी-संग्रह); ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (चयन); ‘अमली’, ‘बटोही’, ‘धरती आबा’ (नाटक); ‘माटीगाड़ी’ (शूद्रक रचित ‘मृच्छकटिकम्’ की पुनर्रचना), ‘मैला आँचल’ (फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास का नाट्यान्तर), ‘दालिया’ (रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित नाटक); ‘रंगमंच का जनतंत्र’ और ‘रंग-अरंग’ (नाट्य-चिन्तन)।

सम्पर्क : पीरमुहानी, मुस्लिम क़ब्रिस्तान के पास, कदमकुआँ, पटना–800 003

ई-मेल : hrishikesh.sulabh@gmail.com

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