Pratinidhi Kavitayen : Jaishankar Prasad

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Pratinidhi Kavitayen : Jaishankar Prasad
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प्रसाद का कवि-कर्म 'आन्तर हेतु' की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि वे मूलत: सूक्ष्म अनुभूतियों के कवि हैं। इनकी अभिव्यक्ति के लिए वे रूप, रस, स्पर्श, शब्द और गंध को पकड़ते हैं—कहीं एक की प्रमुखता है तो कहीं सभी का रासायनिक घोल। ...वे अनेक विधियों से संवेगों को आहूत करते हैं। ...प्रसाद ने करुणा का आह्वान अनेक स्थलों पर किया है। मूल्य रूप में इसकी महत्ता को आज भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि आज तो इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है। ...'ले चल मुझे भुलावा देकर' में पलायन का मूड है तो 'अपलक जागती हो एक रात' में रहस्य का। किन्तु इन क्षणों को प्रसाद की मूल चेतना नहीं कहा जा सकता। वे समग्रत: जागरण के कवि हैं और उनकी प्रतिनिधि कविता है—'बीती विभावरी जाग री।'

इस संग्रह में प्रसाद की उपरिवर्णित कविताओं के साथ 'लहर' से कुछ और कविताएँ, तथा इसके अलावा 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'स्कन्दगुप्त', 'चन्द्रगुप्त' व 'ध्रुवस्वामिनी' नाटकों में प्रयुक्त कविताओं को भी संकलित किया गया है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2023, Ed. 8th
Pages 108p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 1
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Jaishankar Prasad

Author: Jaishankar Prasad

जयशंकर प्रसाद

जन्म : 30 जनवरी, 1890; वाराणसी (उ.प्र.)।

स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक। तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवीप्रसाद तम्बाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार 'सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं।

छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कामायनी’ (काव्य); ‘स्कन्दगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘राज्यश्री’ (नाटक); ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’, ‘इन्द्रजाल’ (कहानी-संग्रह); ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (उपन्यास)।

14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन।

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