कथाकार और निबन्धकार प्रसाद
हिन्दी साहित्य के इतिहास में कहानी को आधुनिक जगत की विधा बनाने में प्रसाद का योगदान अन्यतम है। बाह्य घटना को आन्तरिक हलचल के प्रतिफल के रूप में देखने की उनकी दृष्टि–जो उनके निबंधों में शैवाद्वैत के सैद्धांतिक आधार के रूप में है–ने कहानी में आन्तरिकता का आयाम प्रदान किया है। जैनेन्द्र और अज्ञेय की कहानियों के मूल में प्रसाद के इस आयाम को देखा जा सकता है।
‘छाया’, ‘आकाश दीप’, ‘आंधी’ और ‘इन्द्रजाल’ में यह आन्तरिकता पुर्नजागरणकालीन दृष्टि से सम्पुष्ट होकर क्रमश: इतिहास और यथार्थ की ओर उन्मुख हुई है। ‘इन्द्रजाल’ तक वे अन्तर और बाह्य की द्वन्द्वात्मक अर्थ संहति मानते से लगते हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियों–‘दासी’, ‘देवरथ’, ‘पुरस्कार’, ‘ममता’ आदि में वर्तमान का संदेश है अतीत की घटना नहीं।
उनके निबंधों को मूलत: दो भागों में बांटा जा सकता है। एक कोटि में वे प्राथमिक निबंध हैं जो सूचनात्मक हैं और एक कोटि में वे विचारात्मक निबंध हैं जिनमें वैदुष्य के साथ-साथ यथार्थ की पहचान भी है। ‘कवि और कविता’ निबंध उनके संवेदनात्मक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उनके निबंधों में मनुष्य का इतिहास ही नहीं ‘भावधारा का इतिहास’ मिलता है।
‘काव्य और कला’, ‘रहस्यवाद’ और ‘यथार्थवाद और छायावाद’ उनके सबसे महत्वपूर्ण निबंध हैं जिनमें विवेक और आनन्दवादी धारा के सांस्कृतिक विकास क्रम के साथ-साथ उन्होंने अपने समय के महत्वपूर्ण प्रश्नों का तर्क संगत और संतोष-जनक उत्तर दिया है। संस्कृति, पुरातत्व वर्तमान यथार्थ उनके इन निबंधों में जीवित हैं। अपने समय के आलोचकों की स्थापना–विशेषकर रामचन्द्र शुक्ल की स्थापना–का वे अपने निबंधों में न केवल उत्तर देते हैं बल्कि सपुष्ट प्रमाणों के साथ उत्तर देते हैं।
इस खंड में संकलित कहानियों और निबंधों से हमें उनके व्यक्तित्व को समझने में न केवल सहायता मिलेगी बल्कि इसके बगैर उन्हें और उस युग को ही नहीं आज के रचनात्मक विकास को भी समझना कठिन होगा।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2013, Ed. 4th |
Pages | 1662p |
Translator | Not Selected |
Editor | Satyaprakash Mishra |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 3 |