Prasad Ki Sampoorn Kahaniyan Evam Nibandh

Edition: 2024, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
As low as ₹540.00 Regular Price ₹600.00
10% Off
In stock
SKU
Prasad ki sampoorn kahaniyan evam Nibandh
- +
Share:

कथाकार और निबन्धकार प्रसाद
हिन्दी साहित्य के इतिहास में कहानी को आधुनिक जगत की विधा बनाने में प्रसाद का योगदान अन्यतम है। बाह्य घटना को आन्तरिक हलचल के प्रतिफल के रूप में देखने की उनकी दृष्टि–जो उनके निबंधों में शैवाद्वैत के सैद्धांतिक आधार के रूप में है–ने कहानी में आन्तरिकता का आयाम प्रदान किया है। जैनेन्द्र और अज्ञेय की कहानियों के मूल में प्रसाद के इस आयाम को देखा जा सकता है।
‘छाया’, ‘आकाश दीप’, ‘आंधी’ और ‘इन्द्रजाल’ में यह आन्तरिकता पुर्नजागरणकालीन दृष्टि से सम्पुष्ट होकर क्रमश: इतिहास और यथार्थ की ओर उन्मुख हुई है। ‘इन्द्रजाल’ तक वे अन्तर और बाह्य की द्वन्द्वात्मक अर्थ संहति मानते से लगते हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियों–‘दासी’, ‘देवरथ’, ‘पुरस्कार’, ‘ममता’ आदि में वर्तमान का संदेश है अतीत की घटना नहीं।
उनके निबंधों को मूलत: दो भागों में बांटा जा सकता है। एक कोटि में वे प्राथमिक निबंध हैं जो सूचनात्मक हैं और एक कोटि में वे विचारात्मक निबंध हैं जिनमें वैदुष्य के साथ-साथ यथार्थ की पहचान भी है। ‘कवि और कविता’ निबंध उनके संवेदनात्मक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उनके निबंधों में मनुष्य का इतिहास ही नहीं ‘भावधारा का इतिहास’ मिलता है।
‘काव्य और कला’, ‘रहस्यवाद’ और ‘यथार्थवाद और छायावाद’ उनके सबसे महत्वपूर्ण निबंध हैं जिनमें विवेक और आनन्दवादी धारा के सांस्कृतिक विकास क्रम के साथ-साथ उन्होंने अपने समय के महत्वपूर्ण प्रश्नों का तर्क संगत और संतोष-जनक उत्तर दिया है। संस्कृति, पुरातत्व वर्तमान यथार्थ उनके इन निबंधों में जीवित हैं। अपने समय के आलोचकों की स्थापना–विशेषकर रामचन्द्र शुक्ल की स्थापना–का वे अपने निबंधों में न केवल उत्तर देते हैं बल्कि सपुष्ट प्रमाणों के साथ उत्तर देते हैं।
इस खंड में संकलित कहानियों और निबंधों से हमें उनके व्यक्तित्व को समझने में न केवल सहायता मिलेगी बल्कि इसके बगैर उन्हें और उस युग को ही नहीं आज के रचनात्मक विकास को भी समझना कठिन होगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2024, Ed. 5th
Pages 1662p
Translator Not Selected
Editor Satyaprakash Mishra
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Prasad Ki Sampoorn Kahaniyan Evam Nibandh
Your Rating
Jaishankar Prasad

Author: Jaishankar Prasad

जयशंकर प्रसाद

जन्म : 30 जनवरी, 1890; वाराणसी (उ.प्र.)।

स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक। तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवीप्रसाद तम्बाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार 'सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं।

छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कामायनी’ (काव्य); ‘स्कन्दगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘राज्यश्री’ (नाटक); ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’, ‘इन्द्रजाल’ (कहानी-संग्रह); ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (उपन्यास)।

14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top