Prasad ke Sampurna Natak Avam Ekanki

Edition: 2024, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Prasad ke Sampurna Natak Avam Ekanki

इस ग्रन्‍थ में जयशंकर प्रसाद के सम्पूर्ण नाट्य साहित्य को संगृहीत किया गया है जिनमें उनके चर्चित और बहुमंचित पूर्णकालिक नाटकों के अलावा उनकी एकांकी रचनाएँ भी शामिल हैं।

हिन्दी नाटक-साहित्य में प्रसाद जी का एक विशिष्ट स्थान है। इतिहास, पुराण कथा और अर्द्ध-मिथकीय वस्तु के भीतर से प्रसाद ने राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल को पहली बार अपने नाटकों के माध्यम से उठाया। दरअसल उनके नाटक अतीत-कथा-चित्रों के द्वारा अपने समकालीन राष्ट्रीय संकट को पहचानने और सुलझाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’ का सत्ता-संघर्ष दरअसल राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न से जुड़ा हुआ है।

अपने नाटकों की रचना द्वारा प्रसाद ने भारतेन्दुकालीन रंगमंच से बेहतर और संश्लिष्ट रंगमंच की माँग उठाई। उन्होंने नाटकों की अन्तर्वस्तु के महत्त्व को रेखांकित करते हुए रंगमंच को लिखित नाटक का अनुवर्ती बताया। नाटक के पाठ्य होने के महत्त्व को उन्होंने कभी नज़रअन्दाज़ नहीं किया, साथ ही नाटक के ऐसे मुहावरे को ईजाद किया जिसके लिए रंगमंच को अपना स्वरूप विकसित करना पड़ा।

अभिनय, हरकत और एक गहरी काव्यमयता से परिपूर्ण रोमांसल भाषा प्रसाद की नाट्यभाषा की विशेषताएँ हैं। इसी नाट्य-भाषा के माध्यम से प्रसाद अपने नाटकों में राष्ट्रीय चिन्ता के संग प्रेम के कोमल संस्पर्श का कारुणिक संस्कार भी दे पाते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2024, Ed. 5th
Pages 792p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 4
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Jaishankar Prasad

Author: Jaishankar Prasad

जयशंकर प्रसाद

जन्म : 30 जनवरी, 1890; वाराणसी (उ.प्र.)।

स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक। तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवीप्रसाद तम्बाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार 'सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं।

छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कामायनी’ (काव्य); ‘स्कन्दगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘राज्यश्री’ (नाटक); ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’, ‘इन्द्रजाल’ (कहानी-संग्रह); ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (उपन्यास)।

14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन।

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