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Prasad Ke Sampoorna Upanyas

Edition: 2024, Ed. 6th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Prasad Ke Sampoorna Upanyas
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हिन्दी कथा-साहित्य के विकास के प्रथम चरण में ही प्रसाद जी ने कविताओं के साथ कथा-साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। उनकी सांस्कृतिक अभिरुचि और वैयक्तिक भावानुभूति की स्पष्ट छाप के कारण उनके द्वारा रचित कथा साहित्य अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णत: सक्षम सिद्ध हुआ।

‘कंकाल’ और ‘तितली’ की रचना पर युगीन-बोध का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। लाचार और बेबस स्त्रियों की समस्याओं के आधार पर यथार्थ के बाह्य रूपों का जैसा चित्रण उस समय लेखक कर रहे थे प्रसाद जी उनकी पंक्ति में खड़े हुए और उन्होंने सच्चाइयों की आन्तरिक परतों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। एक तरफ से देखें तो वे व्यक्ति के अन्तर्संबंधों के कथाकार हैं और व्यक्ति के मन की गहराइयों में प्रवेश कर उसे उद्घाटित करना चाहते हैं।

‘तितली’ का कथा-शिल्प और वस्तुविन्यास बाह्य यथार्थ और तत्कालीन सामाजिक सन्दर्भों के प्रति अधिक संवेदनशील है यही कारण है कि ‘तितली’ एक श्रेष्ठ उपन्यास बन सका है।

‘इरावती’ अधूरी रचना है। शुंगकालीन ऐतिहासिक कथा-वस्तु को बड़ी सहजता से इसमें चित्रित किया जा रहा था और बौद्धकालीन रूढ़ियों और विकृतियों के प्रति विद्रोह की सृष्टि की परिणति से निश्चय ही यह उपन्यास एक श्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यास बन जाता लेकिन प्रसाद जी इसे पूरा नहीं कर सके।

कुल मिलाकर प्रसाद जी का उपन्यास साहित्य उनकी सांस्कृतिक दृष्टि और अनुभूतिपरक रचनाबोध के कारण हिन्दी कथा साहित्य में चिरस्मरणीय बना रहेगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Satyaprakash Mishra
Publication Year 2015
Edition Year 2024, Ed. 6th
Pages 520p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
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Jaishankar Prasad

Author: Jaishankar Prasad

जयशंकर प्रसाद

जन्म : 30 जनवरी, 1890; वाराणसी (उ.प्र.)।

स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक। तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवीप्रसाद तम्बाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार 'सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं।

छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ।

प्रमुख कृतियाँ : ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कामायनी’ (काव्य); ‘स्कन्दगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘राज्यश्री’ (नाटक); ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’, ‘इन्द्रजाल’ (कहानी-संग्रह); ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (उपन्यास)।

14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन।

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