हिन्दी कथा-साहित्य के विकास के प्रथम चरण में ही प्रसाद जी ने कविताओं के साथ कथा-साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। उनकी सांस्कृतिक अभिरुचि और वैयक्तिक भावानुभूति की स्पष्ट छाप के कारण उनके द्वारा रचित कथा साहित्य अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णत: सक्षम सिद्ध हुआ।
‘कंकाल’ और ‘तितली’ की रचना पर युगीन-बोध का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। लाचार और बेबस स्त्रियों की समस्याओं के आधार पर यथार्थ के बाह्य रूपों का जैसा चित्रण उस समय लेखक कर रहे थे प्रसाद जी उनकी पंक्ति में खड़े हुए और उन्होंने सच्चाइयों की आन्तरिक परतों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। एक तरफ से देखें तो वे व्यक्ति के अन्तर्संबंधों के कथाकार हैं और व्यक्ति के मन की गहराइयों में प्रवेश कर उसे उद्घाटित करना चाहते हैं।
‘तितली’ का कथा-शिल्प और वस्तुविन्यास बाह्य यथार्थ और तत्कालीन सामाजिक सन्दर्भों के प्रति अधिक संवेदनशील है यही कारण है कि ‘तितली’ एक श्रेष्ठ उपन्यास बन सका है।
‘इरावती’ अधूरी रचना है। शुंगकालीन ऐतिहासिक कथा-वस्तु को बड़ी सहजता से इसमें चित्रित किया जा रहा था और बौद्धकालीन रूढ़ियों और विकृतियों के प्रति विद्रोह की सृष्टि की परिणति से निश्चय ही यह उपन्यास एक श्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यास बन जाता लेकिन प्रसाद जी इसे पूरा नहीं कर सके।
कुल मिलाकर प्रसाद जी का उपन्यास साहित्य उनकी सांस्कृतिक दृष्टि और अनुभूतिपरक रचनाबोध के कारण हिन्दी कथा साहित्य में चिरस्मरणीय बना रहेगा।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Satyaprakash Mishra |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2024, Ed. 6th |
Pages | 520p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 3 |