शुंगकालीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह अधूरा उपन्यास इरावती कौतूहल, जिज्ञासा, रोमांस और मनोरंजन आदि तत्त्वों के कथात्मक इस्तेमाल की दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि मनुष्य की जैविक आवश्यकताओं की निरुद्धि से उत्पन्न विकृतियों और कुण्ठाओं के परिणामों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
इरावती, कालिन्दी, अग्निमित्र, पुष्यमित्र और वृहस्पति मित्र ब्रह्मचारी आदि चरित्र केवल कथा की वृद्धि नहीं करते हैं या केवल रहस्य को घना करके उपन्यास को रोमांचक ही नहीं बनाते हैं बल्कि मानव मन का उद्घाटन करके यथार्थ के चरणों की ओर संकेत करते हैं।
बौद्ध धर्म की जड़ता और रसहीनता के साथ ही साथ इसमें अिंहसा और करुणा की प्रतिवादिता से उत्पन्न उन समस्याओं की ओर संकेत किया गया है, जो सत्याग्रह आन्दोलन से पैदा हो रही थीं। मूल्यों के रूढ़ि में बदलने की प्रक्रिया के संकेत के साथ प्रसाद जी इसमें सामाजिक रूढ़ियों और विकृतियों के प्रति विद्रोह को रेखांकित करते हैं।
सामन्ती मूल्यों के साथ ही साथ इसमें उस सामाजिक परिवर्तन का संकेत किया गया है जो वर्ग और जाति की दीवारों को तोड़कर उपजता है और नये समाज में रूपान्तरित हो जाता है।
उपन्यास इतिहास और कल्पना, आदर्श और यथार्थ, अतीत और वर्तमान, आन्तरिक और बाह्यता की द्विभाजिकताओं के बीच से मनुष्य की रस धारा को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2020 |
Edition Year | 2020, Ed. 1st |
Pages | 82p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21 X 13.5 X 0.5 |