Pagalkhana

Author: Gyan Chaturvedi
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ज्ञान चतुर्वेदी का यह पाँचवाँ उपन्यास है। इसलिए उनके कथा-शिल्प या व्यंग्यकार के रूप में वह अपनी औपन्यासिक कृतियों को जो वाग्वैदग्ध्य, भाषिक, शाब्दिक तुर्शी, समाज और समय को देखने का एक आलोचनात्मक नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं है। हिन्दी के पाठक उनके 'नरक-यात्रा', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपन्यासों के आधार पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों में सिर्फ़ व्यंग्य का ठाठ खड़ा नहीं किया, न ही किसी भी क़ीमत पर पाठक को हँसाकर अपना बनाने का प्रयास किया, उन्होंने व्यंग्य की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नक़्श उकेरे।

इस उपन्यास में भी वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उन्होंने भूमिका में विस्तार से स्पष्ट किया है, यहाँ उन्होंने बाज़ार को लेकर एक विराट फैंटेसी रची है। यह वे भी मानते हैं कि बाज़ार के बिना जीवन सम्भव नहीं है। लेकिन बाज़ार कुछ भी हो, है तो सिर्फ़ एक व्यवस्था ही जिसे हम अपनी सुविधा के लिए खड़ा करते हैं। लेकिन वही बाज़ार अगर हमें अपनी सुविधा और सम्पन्नता के लिए इस्तेमाल करने लगे तो?

आज यही हो रहा है। बाज़ार अब समाज के किनारे बसा ग्राहक की राह देखता एक सुविधा-तंत्र-भर नहीं है। वह समाज के समानान्तर से भी आगे जाकर अब उसकी सम्प्रभुता को चुनौती देने लगा है। वह चाहने लगा है कि हमें क्या चाहिए, यह वही तय करे। इसके लिए उसने हमारी भाषा को हमसे बेहतर ढंग से समझ लिया है, हमारे इंस्टिंक्ट्स को पढ़ा है, समाज के रूप में हमारी मानवीय कमज़ोरियों, हमारे प्यार, घृणा, ग़ुस्से, घमंड की संरचना को जान लिया है, हमारी यौन-कुंठाओं को, परपीड़न के हमारे उछाह को, हत्या को अकुलाते हमारे मन को बारीकी से जान-समझ लिया है, और इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अब वह चाहता है कि हमारे ऊपर शासन करे।

इस उपन्यास में ज्ञान चतुर्वेदी बाज़ार के फूलते-फलते साहस की, उसके आगे बिछे जाते समाज की और अपनी ताक़त बटोरकर उसे चुनौती देनेवाले कुछ बिरले लोगों की कहानी कहते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2020, Ed. 2nd
Pages 271p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2.5
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Gyan Chaturvedi

Author: Gyan Chaturvedi

ज्ञान चतुर्वेदी

 

मऊरानीपुर (झाँसी) उत्तर प्रदेश  में 2 अगस्त, 1952 को जन्मे डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की मध्य प्रदेश में ख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ के रूप में विशिष्ट पहचान है। चिकित्सा शिक्षा के दौरान सभी विषयों में ‘स्वर्ण पदक’ प्राप्त करनेवाले छात्र का गौरव हासिल किया। भारत सरकार के एक संस्थान (बी.एच.ई.एल.) के चिकित्सालय में कोई तीन दशक से ऊपर सेवाएँ देने के पश्चात् शीर्षपद से सेवा-निवृत्ति।

लेखन की शुरुआत सत्तर के दशक से ‘धर्मयुग’ से। प्रथम उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ अत्यन्त चर्चित रहा, जो भारतीय चिकित्सा-शिक्षा और व्यवस्था पर था। इसके पश्चात् ‘बारामासी’, ‘मरीचिका’ तथा ‘हम न मरब’ जैसे उपन्यास आए।

दस वर्षों तक ‘इंडिया टुडे’ तथा ‘नया ज्ञानोदय’ में नियमित स्तम्भ। इसके अतिरिक्त ‘राजस्थान पत्रिका’ और ‘लोकमत समाचार’ दैनिकों में भी काफ़ी समय तक व्यंग्य स्तम्भ-लेखन।

अभी तक तक़रीबन हज़ार व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन। ‘प्रेत कथा’, ‘दंगे में मुर्गा’, ‘मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ’, ‘बिसात बिछी है’, ‘ख़ामोश! नंगे हमाम में हैं’, ‘प्रत्यंचा’ और ‘बाराखड़ी’ व्यंग्य-संग्रह।

शरद जोशी के ‘प्रतिदिन’ के प्रथम खंड का अंजनी चौहान के साथ सम्पादन।

भारत सरकार द्वारा 2015 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित। ‘राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’, (म.प्र. सरकार); दिल्ली अकादमी का व्यंग्य-लेखन के लिए दिया जानेवाला प्रतिष्ठित ‘अकादमी सम्मान’; ‘अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा-सम्मान’ (लन्दन) तथा ‘चकल्लस पुरस्कार’ के अलावा कई विशिष्ट सम्मान।

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