महाभारत नामतः भरतवंश का इतिहास होकर भी, वस्तुतः सत्यवती-द्वैपायन के वंश का इतिहास है। इस ग्रन्थ में धर्म भी कुछ नहीं, अधर्म भी कुछ नहीं। जो है वह केवल सुविधावादी का सुविधाभोग। विदुर-युधिष्ठिर जैसे धार्मिक लोग एवं ईश्वर के प्रतिभू कूट-दक्ष बहुसंख्य आज भी हमारे चारों ओर विराजमान हैं। दुर्योधन स्वभाव से ही कुछ संयत एवं सहिष्णु चरित्र के हैं। प्रचार की महिमा से ठीक इसके विपरीत लोग विश्वास करते आए हैं। कुरुक्षेत्र का ‘धर्मयुद्ध’ कितनी दूर अधर्म के यूपकाष्ठ में बलि हो सकता है, यह जानकर स्तम्भित होना पड़ता है। जिस भारत में आज भी जातिभेद प्रबल है, उच्च और निम्नवर्ग का भेद शरीर के रंग में प्रतिकारित है, वहाँ क्षत्रियों की इस कहानी में सर्वत्र काले रंग का आधिपत्य दिखेगा—शुद्ध रक्त की चूड़ान्त पतन और विलोप।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Indukant Shukla |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2005 |
Edition Year | 2005, Ed. 1st |
Pages | 151p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |