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Sebastian & Sons : A Brief History Of Mrdangam Makers

Author: T.M. Krishna
Translator: Nidheesh Tyagi
Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Sebastian & Sons : A Brief History Of Mrdangam Makers

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संगीत-साधक और सामाजिक कार्यकर्ता टी.एम. कृष्णा की कलम से कर्नाटिक संगीत के प्राथमिक तालवाद्य के इतिहास की तहक़ीक़ात मृदंग के अदृश्य परम्परावाहकों अर्थात उसे बनानेवाले कारीगरों का अब तक अनदेखा रहा वृत्तान्त मृदंग कर्नाटिक संगीत के मंच का अभिन्न हिस्सा है। हालाँकि ये यक़ीन करना मुश्किल है कि इस साज को जिस तरह से अब हम जानते हैं, वह सौ से कुछ ही साल पुराना है। जिन बहुतेरे मृदंग वादकों को इस साज के विकास का श्रेय दिया जाता रहा है, उनमें से कोई भी उसकी कारीगरी के बुनियादी तत्व से परिचित नहीं था। यानी जानवरों का चमड़ा, उसकी प्रकृति और वह किस तरह से साज की ताल, गहराई और आवाज़ को प्रभावित करता है।

बनाने की प्रक्रिया शिल्प, मानसिक और शारीरिक तौर पर थकाने वाली है। गोल सिरों पर बांधे जाने वाले चमड़े के टुकड़े और उन्हें बाँधने के लिए पट्टियों के साथ सही लकड़ी जुटाना, फिर उसे सही तरह से तराशना, तैयार करना, अंतिम रूप देना और आख़िर में ये तसल्ली करना कि सही थाप और ताल निकल रही है, मृदंग बनाना हर स्तर पर गहरे और बारीक काम की माँग करता है। मृदंग कलाकार के अमूर्त ख़यालों को एक भौतिक सचाई में बदलने के लिए सुन पाने की बहुत महीन क़ाबिलियत चाहिए होती है। मृदंग की कला की जब भी बात की जाती है, कारीगर के योगदान को ख़ारिज कर दिया जाता है, सिर्फ़ मज़दूर या मरम्मत करने वाला बता कर।

यह सच है कि महान मृदंग वादक हुए हैं, यह भी सच है कि मृदंग बनाने वाले शानदार कारीगर भी हुए हैं, ज़्यादातर दलित और वे हमेशा कर्नाटिक संगीत समुदाय के हाशिये पर रहे हैं। ‘सेबस्टियन एंड संस’ इन कलाकारों की दुनिया, उनके इतिहास, जिये गये अनुभवों, कथाओं की एक खोज है, जिससे मृदंग से आ रही आवाज़ को लेकर हमारी समझ पहले से ज़्यादा जैविक और पूरी हो पाती है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Nidheesh Tyagi
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 336p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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T.M. Krishna

Author: T.M. Krishna

टी.एम. कृष्णा

थोडुर मादाबुसी कृष्णा कर्नाटिक शास्त्रीय संगीत के विख्यात गायक और गुरु होने के अलावा, लेखक, विचारक, शोधकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वे पर्यावरण, साम्प्रदायिकता, सामाजिक-धार्मिक सुधार और संगीत बिरादरी के बारे में लगातार लिखते रहे हैं। संगीत में नये प्रयोग और नवाचार के लिए जाने जाते हैं।

कला पर केन्द्रित ‘रीशेपिंग आर्ट’ (2013), कर्नाटिक संगीत के दर्शन, सौन्दर्यबोध, समाजशास्त्र और इतिहास पर केन्द्रित किताब ‘सदर्न म्यूज़िक : द कर्नाटिक स्टोरी’ (2013), ‘सेबस्टियन एंड संस’ (2020) उनकी प्रकाशित पुस्तकें है। एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी पर केन्द्रित उनके निबन्ध को 2017 में पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘कैरेवन बुक ऑफ़ प्रोफ़ाइल्स’ में शामिल किया गया। मशहूर गायिका बॉम्बे जयश्री और मैथिली चन्द्रशेखर के साथ मिलकर उन्होंने कर्नाटिक संगीत की पहली कॉफ़ी टेबल बुक ‘वॉयसेस विदिन’ भी प्रकाशित की जिसमें कर्नाटिक संगीत के सात मूर्धन्य कलाकारों के व्यक्तिचित्र हैं। देश-भर में अपने संगीत प्रस्तुतियों के अलावा वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्तम्भ एवं टिप्पणियाँ भी लिखते हैं।

बतौर कलासाधक उन्होंने इस बात की पुरज़ोर वकालत की है कि कला अपनी ताक़त से भारतीय समाज के गहरे विभाजनों को पाट सकती है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें 2016 के ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया। 2014 में उनकी किताब ‘सदर्न म्यूज़िक : द कर्नाटिक स्टोरी’ को नॉन फ़िक्शन वर्ग में सर्वश्रेष्ठ पहली किताब का ‘टाटा लिटरेचर अवार्ड’ मिला। भारत में एकता बचाने और बढ़ाने के लिए उन्हें 2017 में ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता सम्मान’, तमिल ईसाई संगम की तरफ़ से ‘ईसाई पेरारिंगनार सम्मान’, केरल राज्य सरकार की तरफ़ से संगीतज्ञों को दिया जाने वाला महत्‍वपूर्ण सम्मान ‘स्वाति संगीत पुरस्कार’ दिया गया है।

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