Lohiya Ke Vichar

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लोहिया भारतीय राजनीति के विचार-पुरुषों में अपना एक अलग स्थान रखते हैं। गांधी और नेहरू की तरह उनका भी देश तथा विश्व को लेकर एक बड़ा विज़न था। विभिन्न विचारधाराओं के गहन अध्ययन और अपने देश-काल के अन्वीक्षण से उन्होंने अपने विचारों को लगातार धार दी और प्रत्येक विचारधारा से आगे बढ़कर एक सन्तुलित दृष्टि के विकास पर ज़ोर दिया।

वे स्वप्नदर्शी थे, और मानते थे कि परिस्थितियों की विपरीतताओं से संघर्ष करते हुए भी, हमें एक बड़े सपने को अपने सामने जीवित रखना चाहिए। विश्व नागरिकता उनका ऐसा ही सपना था। वे चाहते थे कि मानव किसी एक देश का नहीं, बल्कि विश्व का नागरिक हो। एक से दूसरे देश में जाने के लिए कोई क़ानूनी रुकावट न हो। विश्व सभ्यता का सपना यह होना चाहिए।

यह सपना लोहिया की विराट मनीषा का द्योतक है। इसमें हर तरह के विभाजन और विरोध का निषेध शामिल है।

यह पुस्तक लोहिया के ऐसे ही विचारों का पुंज है। विभिन्न अवसरों पर लिखे गए उनके आलेखों का यह संकलन उनकी मौलिक सोच का प्रमाण है। संस्कृति, दर्शन, इतिहास, भाषा के साथ-साथ स्त्री-पुरुष असमानता और जाति जैसी समस्याओं पर भी उन्होंने नवीन दृष्टि से विचार किया है। वे लकीर के फकीर नहीं थे। किसी भी वाद को उन्होंने आँख मूँदकर न समर्थन दिया और न उसका अनुकरण करने को कहा। गांधीवाद, मार्क्सवाद, सभी को उन्होंने तटस्थ दृष्टि से पढ़ने की सलाह दी क्योंकि हर विचार की अपनी एक काल-संगति होती है, और नए समय में हर विचार के नवीकरण की आवश्यकता होती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2021, Ed. 3rd
Pages 345p
Translator Not Selected
Editor Onkar Sharad
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2.5
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Rammanohar Lohia

Author: Rammanohar Lohia

डॉ. राममनोहर लोहिया

जन्म : अकबरपुर (फ़ैज़ाबाद, उ.प्र.), 23 मार्च, 1910

शिक्षा : अकबरपुर, बनारस और कलकत्ता में। बर्लिन विश्वविद्यालय से 1933 में अर्थशास्त्र में पीएच.डी.।

1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, ‘कांग्रेस सोशलिस्ट' (अंग्रेज़ी साप्ताहिक, कलकत्ता) का सम्पादन। 1936-38 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के विदेश-सचिव। 1942 की अगस्त क्रान्ति का नेतृत्व, विशेष रूप में कांग्रेस रेडियो का संचालन। 1944 के आरम्भ में गिरफ़्तारी, लाहौर के क़िले में यातनाएँ। 1946 में रिहाई के दो महीने बाद ही गोवा के मुक्ति संग्राम का नेतृत्व, नेपाल के लोकतांत्रिक आन्दोलन का (1950 तक) मार्गदर्शन। 1946 में बंगाल और बाद में दिल्ली में गांधी जी के शान्ति प्रयत्नों में सक्रिय योग। 1948 में हिन्द किसान पंचायत के अध्यक्ष। 1947-51 में समाजवादी दल की विदेश नीति समिति के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में यूरोप यात्रा, 1951 में विश्व-यात्रा। 1954 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री। 1955-56, सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना, प्रथम अध्यक्ष। 1958 में अंग्रेज़ी हटाओ, दाम बाँधो, और जाति विनाश आन्दोलनों का सूत्रपात और संगठन-निर्माण। 1962 में फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. से उपचुनाव में लोकसभा के सदस्य निर्वाचित। 1964 में अमरीका यात्रा और रंगभेद के विरुद्ध सिविल नाफ़रमानी करने पर गिरफ़्तारी। 1966 में रूस और पूर्वी जर्मनी की यात्रा। 1937 से 1966 के बीच ब्रितानी, पुर्तगाली, और कांग्रेसी शासनों द्वारा कुल 18 बार गिरफ़्तार।

निधन : नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में 12 अक्टूबर, 1967 में।

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