विज्ञान की शिक्षा में ज्यामिति या रेखागणित के अध्ययन का क्या महत्त्व है, इसे सभी जानते हैं। महान आइंस्टाइन ने तो यहाँ तक कहा है कि इस विश्व के भौतिक गुणधर्मों को ज्यामिति के नियमों से ही भली-भाँति समझा जा सकता है।
स्कूलों में ज्यामिति पढ़ाई जाती है, पर यह नहीं बताया जाता कि ज्यामिति की शुरुआत कैसे हुई, किन देशों में हुई और किन विद्वानों ने इसके विकास में योग दिया। स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली ज्यामिति मूलतः यूक्लिड की ज्यामिति है। अतः विद्यार्थियों को जानना चाहिए कि यूक्लिड कौन थे और उन्होंने ज्यामिति की रचना कैसे की। इससे ज्यामिति को समझने में आसानी होगी।
ज्यामिति के बहुत-से नियम यूक्लिड के पहले खोजे गए थे। यूक्लिड के पहले हमारे देश में भी ज्यामिति के अनेक नियम खोजे गए थे। ‘पाइथेगोर का प्रमेय’, न केवल भारत में, बल्कि चीन व बेबीलोन में भी खोजा गया था। इस पुस्तक में इन सब बातों की रोचक जानकारी दी गई है। साथ ही, पिछले क़रीब दो सौ साल में जो नई-नई ज्यामितियाँ खोजी गई हैं, उनका भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1989 |
Edition Year | 2019 |
Pages | 114p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18.5 X 12.5 X u1 |
Author: Gunakar Muley
गुणाकर मुळे
जन्म : विदर्भ के अमरावती ज़िले के सिन्दी बुजरूक गाँव में 3 जनवरी, 1935 को। आरम्भिक पढ़ाई गाँव के मराठी माध्यम के स्कूल में। स्नातक और स्नातकोत्तर (गणित) अध्ययन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। आरम्भ से ही स्वतंत्र लेखन। विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरातत्त्व, पुरालिपिशास्त्र, मुद्राशास्त्र और भारतीय इतिहास व संस्कृति से सम्बन्धित विषयों पर क़रीब 35 मौलिक पुस्तकें और 3000 से ऊपर लेख हिन्दी में और लगभग 250 लेख अंग्रेज़ी में प्रकाशित। विज्ञान, इतिहास और दर्शन से सम्बन्धित दर्जन-भर ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद।
सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (नई दिल्ली) द्वारा अध्यापकों के लिए आयोजित प्रशिक्षण-शिविरों में लगभग एक दशक तक वैज्ञानिक विषयों पर व्याख्यान देते रहे।
भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् (नई दिल्ली) द्वारा प्रदत्त सीनियर फ़ेलोशिप के अन्तर्गत 'भारतीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी का इतिहास’ से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन-अनुशीलन। विज्ञान प्रसार (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) के दो साल फ़ेलो रहे।
प्रमुख कृतियाँ : ‘अंक-कथा’, ‘अक्षर-कथा’, ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’, ‘आकाश-दर्शन’, ‘संसार के महान गणितज्ञ’, ‘तारों भरा आकाश’, ‘भारतीय इतिहास में विज्ञान’, ‘नक्षत्रलोक’, ‘अन्तरिक्ष-यात्रा’, ‘सौर-मंडल’, ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘एशिया के महान वैज्ञानिक’, ‘काल की वैज्ञानिक अवधारणा’, ‘रॉकेट की कहानी’, ‘सूरज चाँद सितारे’, ‘गणित से झलकती संस्कृति’, ‘ज्योतिष : विकास, प्रकार और ज्योतिर्विद्’, ‘सूर्य’, ‘महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘अंकों की कहानी’, ‘अक्षरों की कहानी’, ‘ज्यामिति की कहानी’, ‘आर्यभट’, ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन’, ‘पास्कल’, ‘केपलर’, ‘आर्किमिडीज़’, ‘भास्कराचार्य’, ‘मेंडेलीफ’, ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’, ‘महाराष्ट्र के दुर्ग’, ‘गणितज्ञ-ज्योतिषी आर्यभट’, ‘भारतीय अंक-पद्धति की कहानी’, ‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘भारतीय विज्ञान की कहानी’, ‘भारतीय सिक्कों का इतिहास’, ‘कंप्यूटर क्या है’, ‘कैसी होगी 21वीं सदी’, ‘खंडहर बोलते हैं’, ‘बीसवीं सदी में भौतिक विज्ञान’, ‘कृषि-कथा’, ‘महान वैज्ञानिक महिलाएँ’, ‘प्राचीन भारत में विज्ञान’, ‘भारत के प्रसिद्ध किले’, ‘हमारी प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ’, ‘गणित की पहेलियाँ’, ‘भारत : इतिहास, संस्कृति और विज्ञान’, ‘आपेक्षिकता-सिद्धान्त क्या है?’ (अनुवाद) आदि।
पुरस्कार-सम्मान : हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्य सम्मान’। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) का ‘आत्माराम पुरस्कार’। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग का ‘जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार’। मराठी विज्ञान परिषद् (मुम्बई) द्वारा श्रेष्ठ विज्ञान-लेखन के लिए सम्मानित। 'आकाश-दर्शन’ व 'संसार के महान गणितज्ञ’ ग्रन्थों के लिए प्रथम ‘मेघनाद साहा पुरस्कार’। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (NCSTC) का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’।
निधन : 16 अक्टूबर, 2009