प्रस्तुत पुस्तक का प्रमुख और सबसे बड़ा लेख 'स्वयंभू महापंडित' है, जिसके आधार पर पुस्तक का नामकरण हुआ है। इस लेख में राहुल जी के कृतित्व और व्यक्तित्व का सारगर्भ लेखा-जोखा है। पुस्तक के अन्य लेखों में ‘राहुल का हिमालय-प्रेम’ तथा ‘राहुल के गुरु, गुरुबन्धु और सहयोगी’ भी विशेष महत्त्व के हैं। राहुल हिमालय के महायात्री ही नहीं, अनन्य आराधक और अन्वेषक भी थे। हिमालय के विभिन्न खंडों से सम्बन्धित उनकी कृतियाँ भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेख 'राहुल का हिमालय प्रेम' को पढ़कर पाठक जानेंगे कि हिमालय सम्बन्धी पुस्तकें तैयार करने में राहुल जी ने कितना परिश्रम किया, किन्तु अन्तत: उन पुस्तकों की कैसी दुर्दशा हुई। इसी प्रकार 'राहुल के गुरु, गुरुबन्धु और सहयोगी' शीर्षक लेख बताता है कि राहुल जी के चरित्र की वे कौन-सी विशेषताएँ थीं जिन्होंने उन्हें महापंडित बना दिया। शेष लेखों में महापंडित के कुछ अन्य प्रमुख पहलुओं पर अधिक व्यापक प्रकाश डाला गया है।
‘स्वयंभू महापंडित’ का विशेष आकर्षण है भदन्त आनन्द कौसल्यायन के नाम लिखे गए राहुल जी के 72 पत्रों का संकलन। राहुल जी की आत्मकथा में उनका 9 अप्रैल, 1956 तक का ही जीवन सामने आता है। उसके बाद के जीवन की महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ इन पत्रों में सुरक्षित हैं। ‘स्वयंभू महापंडित’ में गुणाकर मुळे ने राहुल साहित्य के उन विपुल सन्दर्भों को भी स्पष्ट किया है जिनसे अभी तक पाठकों का सीधा परिचय नहीं था। इस दृष्टि से यह पुस्तक एक शोधग्रन्थ की महत्ता प्राप्त कर लेती है।
‘स्वयंभू महापंडित’ के माध्यम से राहुल सांकृत्यायन के व्यक्तित्व और कृतित्व का इतना सूक्ष्म और गहन अध्ययन हिन्दी में सम्भवत: पहली बार हुआ है। निस्सन्देह, एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 1993 |
Edition Year | 1998 |
Pages | 290p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |