प्राचीन काल में हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार के किसी भी दूसरे सभ्‍य देश से पीछे नहीं था। मध्‍ययुग में अरब देशों ने और यूरोप के देशों ने भारतीय विज्ञान की बहुत-सी बातें सीखीं। लेकिन यदि पूछा जाए कि विज्ञान के क्षेत्र में संसार को भारत की सबसे बड़ी देन कौन-सी है, तो उत्‍तर होगा—आज की हमारी अंक-पद्धति।

आज की हमारी अंक-पद्धति में केवल दस संकेत हैं—शून्‍य और नौ अंक-संकेत। इन दस अंक-संकेतों से हम बड़ी-से-बड़ी संख्‍या लिख सकते हैं। इन दस अंक-संकेतों के अपने स्‍वतंत्र मान हैं। इसके अलावा, हर अंक-संकेत का, संख्‍या में उसके स्‍थान के अनुसार, मान बदलता है। स्‍थानमान और शून्‍य की यह धारणा ही इस अंक-पद्धति की विशेषता है।

हमें गर्व है कि इस वैज्ञानिक अंक-पद्धति की खोज भारत में हुई है। सारे संसार में आज इसी भारतीय अंक-पद्धति का इस्‍तेमाल होता है।

लेकिन यह अंक-पद्धति मुश्किल से दो हज़ार साल पुरानी है। उसके पहले हमारे देश में और संसार के अन्‍य देशों में भिन्‍न-भिन्‍न अंक-पद्धतियों का इस्‍तेमाल होता था। आज की इस वैज्ञानिक अंक-पद्धति के महत्‍त्‍व को समझने के लिए उन पुरानी अंक-पद्धतियों के बारे में भी जानना ज़रूरी है। इस पुस्‍तक में मैंने देश-विदेश की पुरानी अंक-पद्धतियों की जानकारी दी है। तदनन्‍तर, इस शून्‍य वाली नई अंक-पद्धति के आविष्‍कार की जानकारी। यह भारतीय अंक-पद्धति पहले अरब देशों में और बाद में यूरोप के देशों में कैसे फैली, इसका भी रोचक वर्णन इस पुस्‍तक में है।

निस्‍सन्‍देह, हिन्‍दी में यह अपनी तरह की पहली पुस्‍तक है जो विद्यार्थियों एवं सामान्‍य पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1989
Edition Year 2013
Pages 91p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18.5 X 12 X 1
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You're reviewing:Ankon Ki Kahani
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Gunakar Muley

Author: Gunakar Muley

गुणाकर मुळे

जन्म : विदर्भ के अमरावती ज़िले के सिन्‍दी बुजरूक गाँव में 3 जनवरी, 1935 को। आरम्भिक पढ़ाई गाँव के मराठी माध्यम के स्कूल में। स्नातक और स्नातकोत्तर (गणित) अध्ययन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। आरम्‍भ से ही स्वतंत्र लेखन। विज्ञान, विज्ञान का इतिहास, पुरातत्‍त्‍व, पुरालिपिशास्त्र, मुद्राशास्त्र और भारतीय इतिहास व संस्कृति से सम्‍बन्धित विषयों पर क़रीब 35 मौलिक पुस्तकें और 3000 से ऊपर लेख हिन्‍दी में और लगभग 250 लेख अंग्रेज़ी में प्रकाशित। विज्ञान, इतिहास और दर्शन से सम्‍‍बन्धित दर्जन-भर ग्रन्‍थों का हिन्‍दी में अनुवाद।

सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्‍द्र (नई दिल्ली) द्वारा अध्यापकों के लिए आयोजित प्रशिक्षण-शिविरों में लगभग एक दशक तक वैज्ञानिक विषयों पर व्याख्यान देते रहे।

भारतीय इतिहास अनुसन्‍धान परिषद् (नई दिल्ली) द्वारा प्रदत्त सीनियर फ़ेलोशिप के अन्‍तर्गत 'भारतीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी का इतिहास’ से सम्‍बन्धित साहित्य का अध्ययन-अनुशीलन। विज्ञान प्रसार (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) के दो साल फ़ेलो रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘अंक-कथा’, ‘अक्षर-कथा’, ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’, ‘आकाश-दर्शन’, ‘संसार के महान गणितज्ञ’, ‘तारों भरा आकाश’, ‘भारतीय इतिहास में विज्ञान’, ‘नक्षत्रलोक’, ‘अन्‍तरिक्ष-यात्रा’, ‘सौर-मंडल’, ‘ब्रह्मांड परिचय’, ‘एशिया के महान वैज्ञानिक’, ‘काल की वैज्ञानिक अवधारणा’, ‘रॉकेट की कहानी’, ‘सूरज चाँद सितारे’, ‘गणित से झलकती संस्‍कृति’, ‘ज्‍योतिष : विकास, प्रकार और ज्‍योतिर्विद्’, ‘सूर्य’, ‘महान वैज्ञानिक’, ‘आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक’, ‘अंकों की कहानी’, ‘अक्षरों की कहानी’, ‘ज्‍यामिति की कहानी’, ‘आर्यभट’, ‘अल्‍बर्ट आइंस्‍टाइन’, ‘पास्‍कल’, ‘केपलर’, ‘आर्किमिडीज़’, ‘भास्कराचार्य’, ‘मेंडेलीफ’, ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’, ‘महाराष्ट्र के दुर्ग’, ‘गणितज्ञ-ज्योतिषी आर्यभट’, ‘भारतीय अंक-पद्धति की कहानी’, ‘भारतीय लिपियों की कहानी’, ‘भारतीय विज्ञान की कहानी’, ‘भारतीय सिक्कों का इतिहास’, ‘कंप्यूटर क्या है’, ‘कैसी होगी 21वीं सदी’, ‘खंडहर बोलते हैं’, ‘बीसवीं सदी में भौतिक विज्ञान’, ‘कृषि-कथा’, ‘महान वैज्ञानिक महिलाएँ’, ‘प्राचीन भारत में विज्ञान’, ‘भारत के प्रसिद्ध किले’, ‘हमारी प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ’, ‘गणित की पहेलियाँ’, ‘भारत : इतिहास, संस्कृति और विज्ञान’, ‘आपेक्षिकता-सिद्धान्‍त क्‍या है?’ (अनुवाद) आदि।

पुरस्कार-सम्मान : हिन्‍दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्य सम्मान’। केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्थान (आगरा) का ‘आत्माराम पुरस्कार’। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग का ‘जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार’। मराठी विज्ञान परिषद् (मुम्‍बई) द्वारा श्रेष्ठ विज्ञान-लेखन के लिए सम्मानित। 'आकाश-दर्शन’ व 'संसार के महान गणितज्ञ’ ग्रन्‍थों के लिए प्रथम ‘मेघनाद साहा पुरस्कार’। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (NCSTC) का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’।

निधन : 16 अक्टूबर, 2009

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