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Jab Neel Ka Daag Mita : Champaran-1917-E-Book

Author: Pushyamitra
Edition: 2020, Ed 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹131.25 Regular Price ₹175.00
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9788126730513-ebook

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सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।

गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।

सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।

नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।

इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।

इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।

सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2018
Edition Year 2020, Ed 3rd
Pages 152p
Price ₹175.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Pushyamitra

Author: Pushyamitra

पुष्यमित्र

पुष्यमित्र घुमन्तू पत्रकार और लेखक हैं। उनका जन्म मुंगेर में हुआ। वैसे पैतृक गाँव बिहार के पूर्णिया जिले का धमदाहा गाँव है। उन्होंने पहले नवोदय विद्यालय और फिर भोपाल के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उनकी पत्रकारिता-यात्रा भोपाल, दिल्ली, हैदराबाद, चंडीगढ़ जैसे शहरों से होती हुई बिहार-झारखंड में जारी है। वे दैनिक अखबार ‘नवभारत’, ‘अमर उजाला’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘प्रभात खबर’ आदि से सम्बद्ध रहे। कुछ न्यूज़ पोर्टलों के लिए नियमित (लेखन किया और अब ‘इंडिया टुडे’ हिन्दी के साथ जुड़े हैं। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘रुकतापुर’, ‘जब नील का दाग़ मिटा : चम्पारण-1917’, ‘कोसी के वटवृक्ष’, ‘सुन्नैर नैका’, ‘फणीश्वरनाथ रेणु : एक अप्रतिम कथाकार, एक जन्मजात विद्रोही’। ‘रेडियो कोसी’ पहला उपन्यास है।

सम्पर्क : pushymitr@gmail.com

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