Chhatha Beta-Text Book

ISBN: 9788197841460
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
₹125.00
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9788197841460
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उपेन्द्रनाथ अश्क के नाटकों में ‘छठा बेटा’ का विशेष स्थान है। नाटक मुख्य रूप से देखने की वस्तु है। नाटककार के सामने जितनी चुनौती दृश्य को साकार करने की होती है उतनी ही चुनौती पाठ को प्रभावी बनाने की भी होती है, ताकि उसका नाटक अभिनेय और पठनीय, दोनों हो। पठनीयता को नाटक की श्रेष्ठता का अनिवार्य गुण भले न माना जाए लेकिन उसके अभाव में वह  एक साहित्यिक कृति के रूप में पूर्णता प्राप्त करने से वंचित रह जाता है। ‘छठा बेटा’ इन दोनों कसौटियों पर पूरी तरह खरा उतरता है।

इसमें नाटकीय रचना की तीनों आवश्यक इकाइयों—समय, स्थान और अभिनय का सुसंगत संयोजन है। इसका नाटकीय कौशल यानी स्टेज क्राफ्ट देखें तो आरम्भ, गति, संघर्ष, क्लाइमेक्स आदि नाटकीय कार्य-व्यापार की सभी अवस्थाओं का इसमें अनूठा सन्तुलन है। और इस नाटक का पाठ, मंचन-अभिनय के लिए निर्देश-संवाद मात्र तक सीमित नहीं न रहकर एक मुकम्मल पाठ है जिसको सिर्फ पढ़ कर भी कोई पाठक इसके मर्म तक पहुँच सकता है। हास्य-व्यंग्य की एक धारा शुरू से अन्त तक इस नाटक में प्रवाहित होती रहती है जो इसकी पठनीयता को और प्रभावी बना देती है। लेकिन हास्य-व्यंग्य के इस प्रवाह से नाटक की गम्भीरता कहीं बाधित नहीं होती।

मनुष्य की सुख-शान्ति की स्वाभाविक आकांक्षा उस समय दारुण हो उठती है जब वह इसके लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। हमारे सामाजिक जीवन की इस सचाई को अश्क इस नाटक में बखूबी उजागर करते हैं लेकिन निराशा की ओर धकेलते हुए नहीं, बल्कि जीवन की इस विडम्बना पर हँसने का हौसला देते हुए। 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 104p
Price ₹125.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Upendra Nath Ashk

Author: Upendra Nath Ashk

उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क का जन्म 14 दिसम्बर, 1910 को जालन्धर, पंजाब में हुआ था। उन्होंने जालन्धर से ही शिक्षा हासिल की। अध्यापक बने लेकिन 1933 में नौकरी छोड़ दी। जीविकोपार्जन के लिए साप्ताहिक पत्र ‘भूचाल’ का सम्पादन किया। 1936 में लॉ की डिग्री ली। ‘नीलाभ प्रकाशन गृह’ की स्थापना की। उन्होंने अपनी लेखन-यात्रा उर्दू-लेखन से शुरू की फिर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। नाटककार और हिन्दी सलाहकार के रूप में ऑल इंडिया रेडियो में कार्य किया। बम्बई जाकर फिल्मों के लेखन से भी जुड़े रहे।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘सितारों के खेल’, ‘गिरती दीवारें’, ‘गर्म राख’, ‘शहर में घूमता आईना’ (उपन्यास); ‘जुदाई की शाम के गीत’, ‘काले साहब’ (कहानी-संग्रह); ‘जय पराजय’, ‘स्वर्ग की झलक’, ‘कैद और उड़ान’, ‘अलग-अलग रास्ते’, ‘छठा बेटा’ ‘अंजो दीदी’ (नाटक); ‘नया पुराना’, ‘अन्धी गली’, ‘मुखड़ा बदल गया’, ‘चरवाहे’ (एकांकी-संग्रह); ‘मंटो मेरा दुश्मन’ (संस्मरण)।

उन्हें सन् 1972 ई. में ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ व 1965 में ‘संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।

19 जनवरी, 1996 को उनका निधन हुआ। 

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