Anjo Didi

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अंजो दीदी मनोविकारों के घात-प्रतिघात और उनकी प्रतिक्रिया की कहानी है। कोई दैवी घटना वहाँ नहीं है, आकस्मिक रूप से बदलने वाली परिस्थितियाँ वहाँ नहीं हैं, जो जीवन को अँधेरे या उजेले मोड़ पर डाल देती हैं। उसकी कथा की प्रेरक शक्ति है—मनोविज्ञान, जो उस विशिष्ट परिवार की वास्तविक स्थिति से प्रभावित होकर निरन्तर विकसित होता जाता है और नाटकीय सूत्र को बढ़ाता जाता है। केवल व्यक्तियों और मान्यताओं के संघर्ष से वर्गीय यथार्थ की आत्मा जैसे मुखर हो उठी है और उनके रहन-सहन, अतिशय पाबन्दी, नियंत्रण और मशीनी-सोच की सारी विषमता साकार हो उठती है। तॉल्स्तॉय के उपन्यास ‘अन्ना कैरेनिना’ की प्रथम पंक्ति सहसा यहाँ याद हो आती है—“Happy families are all alike, every unhappy family is unhappy in its own way.”

सब तरह से सम्पन्न अंजो का परिवार इस तरह भी दुखी हो सकता है, यह सत्य अनायास ही उभरकर सामने आ जाता है।

इसी यथार्थ को अंजो की सनक और परिवार की ट्रैजिडी में गूँथकर अश्क जी ने निश्चय ही एक कलात्मक सिद्धि प्राप्त की है।

बीस वर्ष के लम्बे समय को इस निपुणता से बाँध लेना हिन्दी नाटकों के लिए सर्वथा नवीन अनुभव है। इतने बड़े काल-क्रम को बिना स्थान बदले मुखर कर देना अश्क जी की अद्वितीय उपलिब्ध है, जिसका श्रेय केवल उन्हीं को है। नाटक-रचना के इस नवीन प्रयोग के लिए हिन्दी का पाठक और दर्शक उनका ऋणी रहेगा।

—भूमिका से

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 152p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Upendra Nath Ashk

Author: Upendra Nath Ashk

उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क का जन्म 14 दिसम्बर, 1910 को जालन्धर, पंजाब में हुआ था। उन्होंने जालन्धर से ही शिक्षा हासिल की। अध्यापक बने लेकिन 1933 में नौकरी छोड़ दी। जीविकोपार्जन के लिए साप्ताहिक पत्र ‘भूचाल’ का सम्पादन किया। 1936 में लॉ की डिग्री ली। ‘नीलाभ प्रकाशन गृह’ की स्थापना की। उन्होंने अपनी लेखन-यात्रा उर्दू-लेखन से शुरू की फिर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। नाटककार और हिन्दी सलाहकार के रूप में ऑल इंडिया रेडियो में कार्य किया। बम्बई जाकर फिल्मों के लेखन से भी जुड़े रहे।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘सितारों के खेल’, ‘गिरती दीवारें’, ‘गर्म राख’, ‘शहर में घूमता आईना’ (उपन्यास); ‘जुदाई की शाम के गीत’, ‘काले साहब’ (कहानी-संग्रह); ‘जय पराजय’, ‘स्वर्ग की झलक’, ‘कैद और उड़ान’, ‘अलग-अलग रास्ते’, ‘छठा बेटा’ ‘अंजो दीदी’ (नाटक); ‘नया पुराना’, ‘अन्धी गली’, ‘मुखड़ा बदल गया’, ‘चरवाहे’ (एकांकी-संग्रह); ‘मंटो मेरा दुश्मन’ (संस्मरण)।

उन्हें सन् 1972 ई. में ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ व 1965 में ‘संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।

19 जनवरी, 1996 को उनका निधन हुआ। 

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