Bhari Dopheree Ke Andhere

मधु कांकरिया की कहानियों को कोई संज्ञा देनी हो तो कहना पड़ेगा–बेबाक। बेबाक विद्रोह! बिना किसी कुंठा और पूर्वाग्रह के खुले दिल से चीजों को देखना, समझना, स्वीकार हो तो स्वीकार, अस्वीकार हो तो अस्वीकार! बोल्ड भी और ब्यूटीफुल भी। अपनी गन्दगी पर परदा डालते व्यक्ति का गमछा खर्र से खींचने में भी उन्हें कोई दुविधा नहीं होती।
गाँव की सड़ती गलियों से लेकर महानगर के रिसते अँधेरे और वेश्यालयों के नरक–मधु के लिए कुछ भी वर्जित और अस्पृश्य नहीं। हर जगह फैली है मधु की कहानियों की दुनिया और मधु की भाषा-शैली! जोगन-जोगन रात...रेशम-रेशम यादें...यह वह कलम है जो पाखंड के लिए किसी को भी नहीं बख्शती लेकिन किसी की जलती हकीकत से आँख नहीं चुराती। मधु मानती हैं कि ‘कोई भी सत्य सार्वकालिक नहीं हो सकता...। कि सागर की विशालता की अपनी सीमा है, वहाँ कभी प्रेम के कमल नहीं खिलते...। कि जिन्दगी का हल खुद जिन्दगी है और प्यार का जवाब खुद प्यार !’
Language | Hindi |
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Format | Paper Back |
Publication Year | 2007 |
Edition Year | 2023, Ed. 2nd |
Pages | 208p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan - Remadhav |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |
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