हमारे समाज में प्रचलित रूढ़ मान्यताओं के बरक्स मानवीय स्वतंत्रता का सवाल सदा ही अनदेखा किया जाता रहा है लेकिन मधु कांकरिया की कहानियाँ सिर्फ़ परम्परागत मान्यताओं की ही नहीं, अधुनिकता के आवरण में लिपटे जीवन-मूल्यों की भी पड़ताल करती हैं और हमारे सामने कई सुलगते हुए सवाल खड़ी कर सोच को रचनात्मक आयाम प्रदान करती हैं। चाहे नक्सलवादी आन्दोलन पर आधारित ‘लेकिन कामरेड’ हो, दाम्पत्य जीवन में परस्पर विश्वास को रेखांकित करती ‘चूहे को चूहा ही रहने दो’ हो या बच्चे के स्कूल में दाख़िले के लिए एक स्त्री की व्यथा-कथा हो; मधु काँकरिया कहीं भी विचार और संवेदना के स्तर पर पाठकों को निराश नहीं करतीं, बल्कि कथारस के प्रवाह में बहाए चलती हैं। औपन्यासिक विस्तार की सम्भावना से युक्त ये कहानियाँ भाषा, शिल्प एवं विचार-तत्त्व के अनूठेपन और भाव एवं विचार के अद्भुत सन्तुलन के कारण निश्चय ही उल्लेखनीय बनी रहेंगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2004 |
Edition Year | 2004, Ed. 1st |
Pages | 207p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |