Aalochanatmak Yatharthvad Aur Premchand-Hard Back

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9788171191918
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डॉ० सत्यकाम की यह आलोचनात्मक पुस्तक प्रेमचन्‍द के उपन्यासों को नई दृष्टि से देखने का एक सार्थक प्रयास है। स्पष्ट है कि लेखक की यह दृष्टि आलोचनात्मक यथार्थवाद के सिद्धान्‍त से विकसित हुई है। आलोचनात्‍मकता यथार्थवाद की प्रमुख और अनिवार्य विशेषता है और आलोचनात्मक यथार्थवाद यथार्थ को व्यक्त करने की एक दृष्टि। इसमें यथार्थ को हू-ब-हू नहीं रख दिया जाता, बल्कि उसके कारणों की परत-दर-परत छानबीन की जाती है। इसमें समस्या का समाधान नहीं प्रस्तुत किया जाता, क्योंकि उपन्यास कोई 'केस-स्टडी' या 'नुस्खा' नहीं होता। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रेमचन्‍द के उपन्यासों पर यह बात और अधिक लागू होती है, क्योंकि वे भारतीय जीवन का महाकाव्य हैं। सच्चाई यह भी है कि प्रेमचन्‍द स्वयं जीवन-यथार्थ को आलोचनात्मक दृष्टि से देखते हैं। उनकी दृष्टि वैज्ञानिक, तर्कसंगत और आधुनिक है। वे निरन्‍तर पराधीनता, भारतीय नारी, नीच-ऊँच, छुआछूत, आर्थिक असमानता और धर्म-सम्प्रदाय सम्बन्धी यथार्थ पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करते हैं।

लेखक ने अपनी इस पुस्तक को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है। पहले अध्याय में उसने यथार्थवाद सम्बन्धी अवधारणाओं और ख़ासकर आलोचनात्मक यथार्थवाद पर विस्तार से विचार किया है, और अन्य अध्यायों में इस अवधारणा के अनुसार प्रेमचन्‍द के यथार्थ विषयक दृष्टिकोण और उनके द्वारा विभिन्न समकालीन समस्याओं को उठाने पर विचार किया गया है ।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Isbn 10 8171191916
Publication Year 1994
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 180p
Price ₹695.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Satyakam

Author: Satyakam

सत्यकाम

2 दिसम्बर, 1959 को बिहार के गया ज़िले के रौना नामक गाँव में जन्म। लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा पटना में। पटना विश्वविद्यालय से हिन्‍दी में एम.ए. और वहीं से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद पटना कॉलेज में रिसर्च एसोशिएट के रूप में कार्य किया और इन दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे हैं।

दस वर्षों तक पटना से प्रकाशित ‘समीक्षा’ पत्रिका के सहायक सम्पादक के रूप में कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेखन।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘उपन्यास : पहचान और प्रगति’ तथा ‘माटी की गंध’ (विवेकी राय के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व पर केन्द्रित)।

 

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