Vikramoravashi-Hard Cover

Author: Kalidas
Translator: Induja Awasthi
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Vikramoravashi-Hard Cover

महाकवि कालिदास कृत ‘विक्रमोर्वशी’
(पराक्रम से विजित उर्वशी) पाँच अंकों का त्रोटक है। संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुसार त्रोटक एक ऐसी नाट्य-
विधा है जिसमें शृंगारिकता अधिक मात्रा में होती है और जिसके पात्रों में दैवी एवं मानुषी पात्रों का
सम्मिश्रण होता है। ‘विक्रमोर्वशी’ की नायिका उर्वशी एक अप्सरा है जो केशी दैत्य से अपना उद्धार करनेवाले
चन्द्रवंशी राजा पुरुरवा के प्रेमपाश में बँधकर स्वर्ग की सुविधाओं से दूर होकर अपने प्रेमी राजा के पास
आना चाहती है। पुरुरवा भी रानी औशीनरी से उदासीन होकर उर्वशी के प्रेमोन्माद में ग्रस्त हो जाता है।
कुशल नाट्यशिल्पी कालिदास ने कथा के इस छोटे से बिन्दु को लेकर एक अत्यन्त भावुक एवं काव्यमय
रंग-सृष्टि की है।
पुरुरवा उर्वशी का प्रथम दर्शन में सहज भाव से उत्पन्न प्रेम और फिर बिछोह, उर्वशी की पुरुरवा के प्रति
आकुलता और स्वर्ग से उसकी नगरी में आना, उसी समय भरत-रचित ‘लक्ष्मी-स्वयंवर’ नाटक में अभिनय के
लिए बुला लिया जाना, नाटक में लक्ष्मी का अभिनय करती उर्वशी का मनोनीत वर को ‘पुरुषोत्तम नारायण’
के स्थान पर पुरुरवा कह जाना, क्रुद्ध भरत द्वारा पृथ्वी पर रहने के लिए अभिशप्त होना, परन्तु इन्द्र की
अनुकम्पा से सन्तान-दर्शन तक पुरुरवा के सहवास के आशीष में बदल जाता है। पुरुरवा और उर्वशी अपने
प्रेम-मिलन पर अति प्रसन्न मनोरम गंधमादन पर्वत की उपत्यका में जाकर उत्कट प्रणय-केलि में डूब जाते
हैं, अचानक उर्वशी मान के वशीभूत होकर अनजाने में स्त्री-प्रवेश-वर्जित कुमारवन में जाकर लता में
परिवर्तित हो जाती है। और तब चित्रित होता है पुरुरवा का गहरा विरह-भाव, वह विक्षिप्त-सा मयूर, कोकिल,
हंस, चक्रवाक, कृष्णसार मृग एवं गजराज से प्रियतमा का पता पूछता है और उत्तर न पाने पर उन्हें राजदंड
देने को कहता है।
‘विक्रमोर्वशी’ के चतुर्थ अंक का विरही पुरुरवा कालिदास के अपूर्व नाट्य-कौशल की सृष्टि है। ‘विक्रमोर्वशी’ का
चतुर्थ अंक अपने पीड़ामय काव्य के कारण तो महत्त्वपूर्ण है ही, उसमें पुरुरवा द्वारा विरह के उत्कट आवेग
में पुरुरवा द्वारा गाए गए अपभ्रंश के पद इसे संस्कृत के अन्य सभी नाटकों से विशिष्ट बना देते हैं, क्योंकि
संस्कृत नाटकों में यह अकेला अपभ्रंश का प्रयोग है, जो पुरुरवा के विरहावेश को जहाँ अधिक स्पष्ट करता
है, वहीं ‘विक्रमोर्वशी’ को एक विशिष्टता प्रदान करता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Isbn 10 VV358
Publication Year 2000
Edition Year 2000, Ed. 1st
Pages 100p
Price ₹125.00
Translator Induja Awasthi
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Author: Kalidas

कालिदास

संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ कीं। कालिदास अपनी अलंकारयुक्त सुन्दर, सरल और मधुर भाषा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएँ बेमिसाल। संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग है और रस का सृजन करने में उनकी कोई उपमा नहीं। उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी साहित्यिक सौन्दर्य के साथ-साथ आदर्शवादी परम्परा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। उनका स्थान वाल्मीकि और व्यास की परम्परा में है।

रचनाएँ : ‘अभिज्ञान शाकुंतल’ (सात अंकों का नाटक); ‘विक्रमोर्वशीय’ (पाँच अंकों का नाटक); ‘मालविकाग्निमित्र’ (पाँच अंकों का नाटक); ‘रघुवंश’ (उन्नीस सर्गों का महाकाव्य); ‘कुमारसम्भव’ (सत्रह सर्गों का महाकाव्य); ‘मेघदूत’ (एक सौ ग्यारह छन्दों की कविता); ‘ऋतुसंहार’ (ऋतुओं का वर्णन)।

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