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Srijan Ka Rasayan-Hard Cover

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9788126726394
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रचना किसी विस्मय से कम नहीं है। शब्दों में जैसे एक समूचा संसार साकार हो उठता है। रचनाकार स्वयं इस रहस्य से अभिभूत रहता है कि कैसे अतीत का कोई क्षण भाषा में कौंध उठता है। स्मृति के अपार विस्तार में शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध के असंख्य अनुभवों में से कब कौन सृजन का सहयात्री बन जाए, कहना कठिन है।

वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति के गद्य का अनूठा आयाम उद्घाटित करती पुस्तक ‘सृजन का रसायन’ संस्मरण के शिल्प में उनकी रचना-प्रक्रिया को रेखांकित करती है। शिवमूर्ति का जीवन अनुभवों का भंडार है। गाँव और गाँव-जवार के जाने कितने चरित्र उनके लेखन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। जिस कथारस व दृश्यधर्मिता के साथ ठेठ देसी अन्दाज़ में वे वृत्तान्त साधते हैं, वह अद्भुत है। गाँव के छोटे-छोटे विवरणों के अलावा जियावन दरजी, डाकू नरेश, धन्नू बाबा, संतोषी काका और जुल्म का विरोध करनेवाला जंगू—सब पुस्तक के पृष्ठों पर जाग उठते हैं।

शिवमूर्ति ने माता-पिता, परिवार, रिश्तेदारों और गाढ़े समय के साथियों को कृतज्ञ आत्मीयता के साथ याद किया है। बकरी चराते, अन्य श्रम साध्य काम करते, मेले में मजमा लगाते हुए वे किस तरह सफलता की राह पर आगे बढ़े, किस तरह सर्जना के संसार में विकसित हुए, प्रतिष्ठा प्राप्त की, इसका वर्णन अत्यन्त पठनीय है।

स्त्रियाँ ‘सृजन का रसायन’ की आत्मा हैं। माँ, नानी, पत्नी, परदेसिन मइया, जग्गू बहू, मनी बहू आदि अनेक चरित्र। और हाँ, ‘पितु मातु सहायक स्वामि सखा’ सरीखी शिवकुमारी। शिवमूर्ति और शिवकुमारी के विचित्र सम्बन्धों पर हिन्दी साहित्य में कौतूहल मिश्रित बहुत कुछ कहा-लिखा गया है। शिवमूर्ति इस पुस्तक में इस रिश्ते की दास्तान बयान करते हैं। जीवनानुभवों के साथ साहित्य के अनेक प्रश्नों के संवाद करती यह पुस्तक सचमुच अनूठी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 128p
Price ₹295.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shivmurti

Author: Shivmurti

शिवमूर्ति

कथाकार शिवमूर्ति का जन्म मार्च, 1950 में सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) जि़ले के गाँव कुरंग में एक सीमान्त किसान परिवार में हुआ। पिता के गृहत्यागी हो जाने के कारण शिवमूर्ति को अल्प वय में ही आर्थिक संकट तथा असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसके चलते मजमा लगाने और जड़ी-बूटियाँ बेचने जैसे काम भी उन्हें करने पड़े।

कथा-लेखन के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज करानेवाले शिवमूर्ति की कहानियों में निहित नाट्य सम्भावनाओं ने दृश्य-माध्यमों को भी प्रभावित किया। कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम तथा सिरी उपमाजोग पर फ़िल्में बनीं। तिरिया चरित्तर, कसाईबाड़ा और भरतनाट्यम के हज़ारों मंचन हुए। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद हुए। साहित्यिक पत्रिकाओं यथा—मंच, लमही, संवेद तथा इंडिया इनसाइड ने इनके साहित्यिक अवदान पर विशेषांक प्रकाशित किए।

प्रकाशित पुस्तकें :

कहानी-संग्रह : केसर कस्तूरी, कुच्ची का क़ानून; उपन्यास : त्रिशूल, तर्पण, आख़िरी छलाँग; नाटक : कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम; सृजनात्मक गद्य : सृजन का रसायन; साक्षात्कार : मेरे साक्षात्कार (सं. : सुशील सिद्धार्थ)।

प्रमुख सम्मान : तिरिया चरित्तर कहानी 'हंस’ पत्रिका द्वारा सर्वश्रेष्ठ कहानी के रूप में पुरस्कृत। ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’, 'आनन्दसागर स्मृति कथाक्रम सम्मान’, 'लमही सम्मान’, 'सृजन सम्मान’ एवं 'अवध भारती सम्मान’।

सम्पर्क  : 'सबद’, 2/325, विकास खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 (उ.प्र.)।

ई-मेल : shivmurtishabad@gmail.com

वेबसाइट : www.shivmurti.com

 

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