Trishul

Author: Shivmurti
Edition: 2012, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Trishul
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‘त्रिशूल’ वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति का ऐसा उपन्यास है जो उनकी कहानियों की लीक से हटकर एक नए दृष्टिबोध और तेवर के साथ सामने आता है। साम्प्रदायिकता और जातिवाद हमारे समाज में अरसे से जड़ जमाए बैठे हैं पर इनकी आँच पर राजनीति की रोटी सेंकने की होड़ के चलते इनके ज़हर और आक्रामकता में इधर चिन्ताजनक वृद्धि हुई है। फलस्वरूप, आज समाज में भयानक असुरक्षा, अविश्वास और वैर-भाव पनप रहा है। धर्म, जाति और सम्प्रदाय के ठेकेदार आदमी और आदमी के बीच की खाई को निरन्तर चौड़ी करते जा रहे हैं।

‘त्रिशूल’ न केवल मन्दिर-मंडल की बल्कि आज के समाज में व्याप्त उथल-पुथल और टूटन की कहानी है। देशव्यापी उथल-पुथल को कथ्य बनाकर लेखक जातिवाद के विरूप और साम्प्रदायिकता की साज़िश को बेबाकी और निर्ममता से बेनक़ाब करता है। ओछे हिन्दूवाद को ललकारता है।

त्रिशूल को प्रशंसा के फूल ही नहीं, विरोध के पत्थर भी कम नहीं मिले। इसे जातियुद्ध भड़काने और आग लगानेवाली रचना कहा गया। इस पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए पैम्फ़लेटों और सभाओं द्वारा लम्बा निन्दा अभियान चलाया गया।

यह उपन्यास इस तथ्य को भी स्पष्टता से इंगित करता है कि प्रतिगामी शक्तियों का मुँहतोड़ जवाब शोषण और उत्पीड़न झेल रहे दबे-कुचले ग़रीबजन ही दे सकते हैं, दे रहे हैं।

उपन्यास के पात्र, चाहे वह पाले हो, महमूद हो, शास्त्री जी हों, चौकीदार या मिसिराइन हों, यहाँ तक कि गाय, बछड़ा या कुत्ता झबुआ हो, पाठक के दिल में गहराई तक उतर जाते हैं।

भारतीय समाज के अन्तर्विरोधों को उजागर करता एक स्मरणीय-संग्रहणीय उपन्यास।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1995
Edition Year 2012, Ed. 2nd
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Shivmurti

Author: Shivmurti

शिवमूर्ति

कथाकार शिवमूर्ति का जन्म मार्च, 1950 में सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) जि़ले के गाँव कुरंग में एक सीमान्त किसान परिवार में हुआ। पिता के गृहत्यागी हो जाने के कारण शिवमूर्ति को अल्प वय में ही आर्थिक संकट तथा असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसके चलते मजमा लगाने और जड़ी-बूटियाँ बेचने जैसे काम भी उन्हें करने पड़े।

कथा-लेखन के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज करानेवाले शिवमूर्ति की कहानियों में निहित नाट्य सम्भावनाओं ने दृश्य-माध्यमों को भी प्रभावित किया। कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम तथा सिरी उपमाजोग पर फ़िल्में बनीं। तिरिया चरित्तर, कसाईबाड़ा और भरतनाट्यम के हज़ारों मंचन हुए। अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में रचनाओं के अनुवाद हुए। साहित्यिक पत्रिकाओं यथा—मंच, लमही, संवेद तथा इंडिया इनसाइड ने इनके साहित्यिक अवदान पर विशेषांक प्रकाशित किए।

प्रकाशित पुस्तकें :

कहानी-संग्रह : केसर कस्तूरी, कुच्ची का क़ानून; उपन्यास : त्रिशूल, तर्पण, आख़िरी छलाँग; नाटक : कसाईबाड़ा, तिरिया चरित्तर, भरतनाट्यम; सृजनात्मक गद्य : सृजन का रसायन; साक्षात्कार : मेरे साक्षात्कार (सं. : सुशील सिद्धार्थ)।

प्रमुख सम्मान : तिरिया चरित्तर कहानी 'हंस’ पत्रिका द्वारा सर्वश्रेष्ठ कहानी के रूप में पुरस्कृत। ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’, 'आनन्दसागर स्मृति कथाक्रम सम्मान’, 'लमही सम्मान’, 'सृजन सम्मान’ एवं 'अवध भारती सम्मान’।

सम्पर्क  : 'सबद’, 2/325, विकास खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 (उ.प्र.)।

ई-मेल : shivmurtishabad@gmail.com

वेबसाइट : www.shivmurti.com

 

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