Kuchchi Ka Kanoon

Awarded Books,Fiction : Stories
Author: Shivmurti
As low as ₹157.50 Regular Price ₹175.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Kuchchi Ka Kanoon
- +

शिवमूर्ति की कहानियों का जितना साहित्यिक महत्त्व है, उतना ही समाजशास्त्रीय भी। आप उन्हें गाँव के ‘रियलिटी चेक’ के रूप में पढ़ सकते हैं। उनमें गाँव का वह सकारात्मक पक्ष भी है जिसे हम गाँव की थाती कहते हैं और वह नकारात्मक भी जो गाँव ने पुराना होते जाने के क्रम में धीरे-धीरे अर्जित किया। यथार्थ की इस समृद्धि की ओर ध्यान तब जाता है जब हम देखते हैं कि शिवमूर्ति गाँव और उनमें बसे मनुष्यों को गहन आत्मीयता देने के बावजूद इस परिवेश में व्याप्त संकट, दुख, विषमता और विसंगति को दृष्टि-ओझल नहीं होने देते। वे वहाँ व्याप्त आत्मविनाशी प्रवृत्तियों और लोकाचार के कारकों की शिनाख़्त करते हुए उन पर प्रहार करते हैं। इस तरह शिवमूर्ति की कहानियाँ ग्रामीण समाज के जातिवाद, राजनीतिक क्षरण, धर्मभीरुता, स्त्री-दमन और ताक़त की हिंसा का प्रतिपक्ष बनती हैं।

‘बनाना रिपब्लिक’ कहानी की उपलब्धि यह है कि वह दलित चेतना को उनकी मुक्ति की राह के रूप में सामने लाती है और पंचायत चुनाव की परिणति कैरेबियन देशों के ‘बनाना रिपब्लिक’ में रिड्यूस हो जाने की आशंका को निर्मूल कर देती है। मतदान प्रक्रिया का जैसा उत्खनन यह कहानी करती है वह देर तक स्तब्ध किए रहता है। ‘कुच्ची का क़ानून’ गाँव के गहरे कुएँ से बाहर जाते रास्ते की कहानी है जिसे कुच्ची नाम की एक युवा विधवा अपनी कोख पर अपने अधिकार की अभूतपूर्व घोषणा के साथ प्रशस्त करती है। वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी के शब्दों में, “एक भी ऐसा समकालीन रचनाकार नहीं है जिसके पास कुच्ची जैसा सशक्त चरित्र हो। यह चरित्र निर्माण क्षमता शिवमूर्ति को बड़ा कथाकार बनाती है।’’

‘ख़्वाजा ओ मेरे पीर!’ एक विरल-कथा है जिसमें स्त्री-पुरुष सम्बन्ध के एक दारुणपक्ष को रेखांकित करते हुए उस करुणा के अविस्मरणीय बिम्ब रचे गए हैं जो नागर सभ्यता में शायद ही कहीं देखने को मिलें। संग्रह की अन्तिम कहानी ‘जुल्मी’ 1970 के आसपास लिखी गई शुरुआती रचना है। इसे इस आग्रह के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है कि पाठक देखें, उनका प्रिय कथाकार अपनी रचना-यात्रा में कहाँ से कहाँ तक पहुँचा है?

निश्चय ही ‘कुच्ची का क़ानून’ की कहानियों से गुज़रकर आप शिवमूर्ति को सूचित करना चाहेंगे कि वे एक जन्मजात कथाकार हैं जिनके होने पर कोई भी भाषा गर्व कर सकती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed 1st
Pages 152p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Shivmurti

Author: Shivmurti

शिवमूर्ति

शिवमूर्ति का जन्म सन् 1950 में सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश के गाँव कुरंग में एक सीमान्त किसान परिवार में हुआ। उन्हें अल्प वय में ही आर्थिक संकट तथा असुरक्षा से दो-चार होना पड़ा। इसके चलते मजमा लगाने, जड़ी-बूटियाँ बेचने जैसे काम भी किए।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘केसर कस्तूरी’, ‘कुच्ची का कानून’ ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘त्रिशूल’, ‘तर्पण’, ‘अगम बहै दरियाव’ (उपन्यास); ‘कसाईबाड़ा’ (नाटक); ‘सृजन का रसायन’ (सृजनात्मक गद्य); ‘मेरे साक्षात्कार’ (सं. सुशील सिद्धार्थ)।

कथा-लेखन के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही प्रभावी उपस्थिति दर्ज करानेवाले शिवमूर्ति की रचनाओं में निहित नाट्य- सम्भावनाओं ने दृश्य-माध्यम को भी प्रभावित किया। ‘कसाईबाड़ा’, ‘तिरिया चरित्तर’, ‘भरतनाट्यम’ तथा ‘सिरी उपमाजोग’ पर फिल्में बनीं। ‘तर्पण’ उपन्यास पर बनी फीचर फिल्म दो फिल्म-उत्सवों में पुरस्कृत हुई। ‘तिरिया चरित्तर’ तथा ‘कसाईबाड़ा’ के हजारों मंचन हुए। कहानियाँ अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित हुईं।

कहानी ‘तिरिया चरित्तर’ को ‘हंस’ पत्रिका द्वारा सर्वश्रेष्ठ कहानी के रूप में पुरस्कृत किया गया।

उन्हें ‘आनन्दसागर स्मृति कथाक्रम सम्मान’, ‘लमही सम्मान’, ‘सृजन सम्मान’, ‘अवध भारती सम्मान’, ‘अमरावती सृजन पुरस्कार’, ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

ई-मेल : shivmurtishabad@gmail.com

 

Read More
Books by this Author

Back to Top