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Shri Guru Granth-Darshan-Hard Cover

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‘गुरुग्रन्थ’ की अधिकांश रचनाएँ उन सिक्ख गुरुओं की हैं जो सीधे गुरु नानक देव की शिष्य-परम्परा में आते हैं तथा जिन्हें क्रमश: उन्हीं की ‘ज्योति का प्रतिरूप’ रहते आने के कारण, 'नानक' संज्ञा द्वारा अभिहित करने की परिपाटी भी चली आई है।

इसमें संगृहीत वाणियों के रचयिताओं की चेष्टा अधिकतर यही जान पड़ती है कि जो कुछ वास्तविक सत्य के रूप में अनुभूत हो उसे स्वयं अपने जीवन में भी उतारा जाए तथा वैसा ही करने का परामर्श किसी दूसरे को भी दिया जाए। वैसे सत्य का स्वरूप सदा एकरस एवं विश्वजनीन ही हो सकता है।

‘गुरुग्रन्थ' की एक ऐसी अन्य विशेषता, उसमें संगृहीत विविध रचनाओं के क्रमदान में भी पाई जा सकती है। उसमें आए हुए पदों को कोई ऐसा शीर्षक भी दिया हुआ नहीं मिलता जो विषयानुसार निश्चित किया गया हो तथा जिसके सहारे हमें उस मत-विशेष का परिचय मिल सके जिसे उनके रचयिताओं ने प्रकट किया होगा। उनका क्रम केवल रागानुसार ही स्थिर किया गया जान पाता है जिससे इस विषय में, हमें कोई भी सहायता नहीं मिल पाती। हमें यहाँ प्रत्यक्षत: केवल इतना ही पता चल पाता है कि सिक्ख गुरुओं ने, तथा कतिपय सन्तों, भक्तों ने एवं सूफियों तक ने भी एक ही प्रकार के गीत गाए होंगे।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 304p
Price ₹750.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Jairam Mishra

Author: Jairam Mishra

जयराम मिश्र

डॉ. जयराम मिश्र का जन्म 1915 में मुकुन्दपुर, ज़िला—इलाहाबाद में हुआ था।

शिक्षा : एम.ए., एम.एड., पीएच.डी., उपाधियाँ प्राप्त करने के उपरान्त हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी के साथ-साथ बांग्ला और पंजाबी भाषा-साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया।

युवावस्था में स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहे। सन् 1942 के आन्दोलन में भाग लेने पर राजद्रोह का मुक़दमा चला और छह वर्षों का कारावास भोगा। जेल में रहकर आध्यात्मिक ग्रन्थों—गीता, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि का गहन चिन्तन-मनन किया, फलत: दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त कीं। इलाहाबाद डिग्री कॉलेज में अध्यापन करते हुए अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया।

'श्री गुरुग्रन्थ-दर्शन' तथा 'नानक वाणी' कृतियों ने हिन्दी तथा पंजाबी में स्थायी प्रतिष्ठा प्रदान की। जीवनी-ग्रन्थों जैसे—‘गुरु नानक’, ‘स्वामी रामतीर्थ’, ‘आदि गुरु शंकराचार्य’, ‘मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम’, ‘लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण’, ‘शक्तिपुंज हनुमान’ ने अपनी कथात्मक ललित शैली, सहज भाषा-प्रवाह तथा स्वयं एक सन्त की लेखनी से प्रणीत होने के कारण अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।

नैतिक ब्रह्मचारी डॉ. मिश्र मूलत: आत्मस्वरूप में स्थित उच्चकोटि के सन्त और धार्मिक विभूति थे।

निधन : सन् 1987

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