Guru Nanak Dev : Jivan Aur Darshan

Author: Jairam Mishra
Edition: 2017, Ed 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Guru Nanak Dev : Jivan Aur Darshan
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डॉ. जयराम मिश्र ने इस पुस्तक में गुरुमत दर्शन को गुरुनानक देव जी की जीवन-घटनाओं द्वारा प्रकट किया है। स्थान-स्थान पर गुरुदेव के उच्चारित शब्दों की व्याख्या की गई है, ताकि साधारण पाठक गुरुमत सम्बन्धी ठीक-ठीक परिचय प्राप्त कर सकें। घटनाओं के आन्तरिक तथ्य को लेखक ने विस्तारपूर्वक प्रकट किया है।...डॉ. मिश्र की लेखनी में बल है। उनका गुरुमत का शान विषद् और निर्दोष है।...इस पुस्तक का स्रोत चाहे हमारी जन्म साखियाँ क्यों न हों, परन्तु जिस सुयोग्य ढंग से घटनाओं का वर्णन किया गया है, वह लेखक की मौलिकता का परिचायक है।...पुस्तक के अन्त में दो अध्याय व्यक्तित्व एवं दर्शन सम्बन्धी अलग दिए गए हैं।...मैं इस मनोहर रचना के लिए डॉ. जयराम मिश्र को बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह रचना हिन्दी पाठकों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगी।

—डॉ. सुरेन्द्रसिंह कोहली

वरिष्ठ प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, पंजाबी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़।  

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Edition Year 2017, Ed 3rd
Pages 295p
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Publisher Rajkamal Prakashan
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Jairam Mishra

Author: Jairam Mishra

जयराम मिश्र

डॉ. जयराम मिश्र का जन्म 1915 में मुकुन्दपुर, ज़िला—इलाहाबाद में हुआ था।

शिक्षा : एम.ए., एम.एड., पीएच.डी., उपाधियाँ प्राप्त करने के उपरान्त हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी के साथ-साथ बांग्ला और पंजाबी भाषा-साहित्य का गहन अध्ययन किया तथा अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया।

युवावस्था में स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहे। सन् 1942 के आन्दोलन में भाग लेने पर राजद्रोह का मुक़दमा चला और छह वर्षों का कारावास भोगा। जेल में रहकर आध्यात्मिक ग्रन्थों—गीता, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि का गहन चिन्तन-मनन किया, फलत: दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त कीं। इलाहाबाद डिग्री कॉलेज में अध्यापन करते हुए अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया।

'श्री गुरुग्रन्थ-दर्शन' तथा 'नानक वाणी' कृतियों ने हिन्दी तथा पंजाबी में स्थायी प्रतिष्ठा प्रदान की। जीवनी-ग्रन्थों जैसे—‘गुरु नानक’, ‘स्वामी रामतीर्थ’, ‘आदि गुरु शंकराचार्य’, ‘मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम’, ‘लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण’, ‘शक्तिपुंज हनुमान’ ने अपनी कथात्मक ललित शैली, सहज भाषा-प्रवाह तथा स्वयं एक सन्त की लेखनी से प्रणीत होने के कारण अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।

नैतिक ब्रह्मचारी डॉ. मिश्र मूलत: आत्मस्वरूप में स्थित उच्चकोटि के सन्त और धार्मिक विभूति थे।

निधन : सन् 1987

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