Samaychakra

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Author: Dhirendra Verma
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संसार के सभी मनुष्यों का पूर्वजन्म और अगला जन्म होता है। पूर्वजन्म की यादें इसलिए भूल जाती हैं क्योंकि प्रत्येक जन्म स्वयं ही इतना विशद और विशाल होता है कि यदि हमें पिछला जन्म याद आ जाए तो इस जीवन का उत्तरदायित्व और भार वहन करना असम्भव हो जाएगा। इसका मतलब यह नहीं कि पूर्वजन्म हम एकदम से विस्मृत कर देते हैं। पूर्वजन्म की स्मृति हमारे अवचेतन में निरन्तर दबी रहती है जो कभी-कभी याद आ जाती है। हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह हमारे पिछले कर्मों के आधार पर हो रहा है और भविष्य में जो कुछ भी हमारे साथ होगा वह हमारे वर्तमान कर्मों के आधार पर होगा। अर्थात अतीत का जो वर्तमान से सम्बन्ध है वही सम्बन्ध वर्तमान का भविष्य से है। सारा संसार ही नहीं समस्त सृष्टि कार्य और कारण के सिद्धान्त के आधार पर चल रही है, जिसे हम कर्म और भाग्य का भी नाम दे सकते हैं। जो कुछ भी हम कर रहे हैं उसका परिणाम हमें भुगतना ही होगा। इसलिए हम यदि अपना भविष्य स्वर्णिम बनाना चाहते हैं तो हमें अच्छे से अच्छे कार्य करने होंगे।

समीर को नैनीताल के ‘जोशी लॉज़’ में एक अद्भुत अनुभव होता है। वहाँ पर समीर अपनी उम्र के पैंतीस वर्ष अतीत में पहुँच जाता है। उसकी भेंट सैम नामक युवक से होती है। सैम से उसे पता चलता है कि योग और मंत्र की साधना से उसने अपना अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों जान लिया है। अर्थात वह साधना की उस स्थिति में पहुँच गया है जहाँ मनुष्य अपना प्रारब्‍ध जान लेता है।

समीर को यह जीवन्त अनुभव जैसा लगता है परन्तु वास्तव में ऐसा नींद में हुआ। सैम से उसकी भेंट पूर्वजन्म से जुड़ी थी। ‘समयचक्र’ की परिक्रमा प्रत्येक मनुष्य करता है। समीर को यह अनुभव अपने जीवन में अनेक बार होता है। उसे विश्वास हो जाता है कि कर्म और भाग्यवाद का सम्बन्ध अवश्य ही पूर्वजन्म और पुनर्जन्म से है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2021
Edition Year 2021, Ed. 1st
Pages 96p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Dhirendra Verma

Author: Dhirendra Verma

धीरेन्द्र वर्मा 

जन्म : 17 मई, 1897 को बरेली के भूड़ मुहल्ले में हुआ।

शिक्षा : क्वींस कॉलेज, लखनऊ से सन् 1914 में प्रथम श्रेणी में स्कूल लीविंग परीक्षा पास की और हिन्दी में विशेष योग्यता। म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद से सन् 1921 में संस्कृत से एम.ए. किया। सन् 1934 में प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक ज्यूल ब्लॉख के निर्देशन में पेरिस यूनिवर्सिटी से डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1924 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रथम अध्यापक नियुक्त हुए, बाद में प्रोफ़ेसर तथा हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। हिन्दुस्तानी अकादमी के सदस्य और दीर्घकाल तक मंत्री के पद पर नियुक्त रहे। सन् 1958-59 में लिग्निस्टिक ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे। सागर विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे। जबलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर कार्य किया।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी भाषा का इतिहास’, ‘हिन्दी भाषा और लिपि’, ‘ब्रजभाषा व्याकरण’, ‘अष्टछाप’, ‘सूरसागर सार’, ‘मेरी कॉलेज डायरी’, ‘ब्रजभाषा हिन्दी साहित्य कोश’, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘कम्पनी के पत्र’, ‘ग्रामीण हिन्दी’, ‘हिन्दी राष्ट्र’, ‘विचारधारा’, ‘यूरोप के पत्र’ आदि।

निधन : प्रयाग में सन् 1973 में।

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