Aastha Ke Swar

Awarded Books,Fiction : Novel
Author: Dhirendra Verma
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Aastha Ke Swar

आस्था के स्वर में लेखक धीरेन्द्र वर्मा ने निराशा और हताशा के दौर से गुजर रही आज की पीढ़ी के समक्ष एक ऐसे पात्र को पेश किया है जो हाल की चुनौतियों को बिना किसी प्रकार का समझौता किए निर्विकार भाव से झेल जाता है। संघर्षों की राह में उसके साथ होता है एक पुरुष—एक सुदर्शन पुरुष जो उसे भटकने से रोकता है। वह जो अदृश्य होते हुए भी सच्चा पथ-प्रदर्शक है, सृष्टि के उस काल का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारे जीवन से बहुत पहले था और उसके बहुत बाद तक रहेगा।

धीरेन्द्र वर्मा ने आस्था के स्वर के माध्यम से उन बिन्दुओं को रेखांकित किया है जहाँ से भटकाव शुरू होता है और उससे बचने के लिए उस प्रकाश का परिचय दिया है जो हर समय हमारे साथ रहता है, परन्तु हम उसकी सहायता नहीं ले पाते। केवल हमारी आत्मा, हमारा विवेक ही उस अदृश्य शक्ति से ऊर्जस्वित होकर प्रकाश बिन्दुओं से जुड़ पाता है। यह पुस्तक उन परिभाषाओं को तोड़ने का प्रयास भी करती है जिन्हें आज के समाज में धन-बल और बाहुबल ने नए सिरे से गढ़ने का काम किया है। भटकाव के इस दौर में धीरेन्द्र वर्मा की यह पुस्तक सचमुच पथ-प्रदर्शक की भूमिका अदा करेगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2021
Edition Year 2021, Ed. 1st
Pages 72p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Dhirendra Verma

Author: Dhirendra Verma

धीरेन्द्र वर्मा 

जन्म : 17 मई, 1897 को बरेली के भूड़ मुहल्ले में हुआ।

शिक्षा : क्वींस कॉलेज, लखनऊ से सन् 1914 में प्रथम श्रेणी में स्कूल लीविंग परीक्षा पास की और हिन्दी में विशेष योग्यता। म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद से सन् 1921 में संस्कृत से एम.ए. किया। सन् 1934 में प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक ज्यूल ब्लॉख के निर्देशन में पेरिस यूनिवर्सिटी से डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1924 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रथम अध्यापक नियुक्त हुए, बाद में प्रोफ़ेसर तथा हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। हिन्दुस्तानी अकादमी के सदस्य और दीर्घकाल तक मंत्री के पद पर नियुक्त रहे। सन् 1958-59 में लिग्निस्टिक ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे। सागर विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे। जबलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर कार्य किया।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी भाषा का इतिहास’, ‘हिन्दी भाषा और लिपि’, ‘ब्रजभाषा व्याकरण’, ‘अष्टछाप’, ‘सूरसागर सार’, ‘मेरी कॉलेज डायरी’, ‘ब्रजभाषा हिन्दी साहित्य कोश’, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘कम्पनी के पत्र’, ‘ग्रामीण हिन्दी’, ‘हिन्दी राष्ट्र’, ‘विचारधारा’, ‘यूरोप के पत्र’ आदि।

निधन : प्रयाग में सन् 1973 में।

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