Sahitya Ka Samajshastra

Author: Bachchan Singh
You Save 15%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Sahitya Ka Samajshastra

राजनीतिक जगत की तरह आलोचना भी दो शिविरों में बँट गई है—समाजशास्‍त्र का शिविर और भाषाशास्‍त्र का शिविर। दोनों शिविर समय-समय पर एक दूसरे पर हमला करते हैं। आलोचना का संकट यह है कि क्या उसे हर हालत में शिविरबद्ध होकर ही रहना पड़ेगा? सही बात तो यह है कि हम न जीवन में विज्ञान और टेक्नोलॉजी से मुक्त हो सकते हैं और न साहित्य से। यदि साहित्य को अपनी रक्षा करनी है तो उसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी से सहायता लेनी पड़ेगी। अत: साहित्य के रूपवादी दृष्टिकोण की एकतरफ़ा भर्त्सना नहीं की जा सकती। उसमें ऐसे तत्त्व मौजूद हैं जिनसे समाजशास्रीय आलोचना सम्पुष्ट और मुकम्मल होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed 1st
Pages 100p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Sahitya Ka Samajshastra
Your Rating
Bachchan Singh

Author: Bachchan Singh

बच्चन सिंह

हिन्‍दी साहित्य का दूसरा इतिहास के रूप में हिन्‍दी को एक अनूठा आलोचना-ग्रन्‍थ देनेवाले बच्चन सिंह का जन्म 2 जुलाई, 1919 को जिला जौनपुर के मदवार गाँव में हुआ था।

शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हुई।

आलोचना के क्षेत्र में आपका योगदान इन पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है : क्रान्तिकारी कवि निराला, नया साहित्य, आलोचना की चुनौती, हिन्दी नाटक, रीतिकालीन कवियों की प्रेम-व्यंजना, बिहारी का नया मूल्यांकन, आलोचक और आलोचना, आधुनिक हिन्दी आलोचना के बीज शब्द, साहित्य का समाजशास्त्र और रूपवाद, आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास, भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन तथा हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास।

कथाकार के रूप में आपने लहरें और कगार, सूतो व सूतपुत्रो वा (उपन्यास) तथा कई चेहरों के बाद (कहानी-संग्रह) की रचना की। लगभग एक दशक तक प्रचारिणी पत्रिका के सम्‍पादक रहे।

निधन : 5 अप्रैल, 2008

Read More
Books by this Author
Back to Top