Ram Sahitya Kosh : Vols. 1-2

Collected Works - Rachnawali
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Ram Sahitya Kosh : Vols. 1-2

यह कोश केवल एक सन्दर्भ कोश मात्र नहीं है। यह समग्र भारत की राष्ट्रीय रागात्मक एकता का स्वयं में बृहत्तर तथा व्यापक साक्ष्य है। आप कल्पना करें, उस कालखंड की, जब भारत की समृद्धि एवं अखंडता पर विदेश हमले शुरू हुए। प्रारम्भिक स्थिति में शक, हूण, किरात, खास आभीर, यूनानी शक्तियों के भारत पर हमले हुए, जिनमें से कुछ तो भाग गए और कुछ हम भारतीयों के बीच रहते हुए पूरी तरह से भारतीय बन गए। इन सबके बावजूद, हमारा अपना भारत अभी तक अपनी इसी सांस्कृतिक अडिगता का साक्ष्य है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था के बाद, हमारी सांस्कृतिक धरोहर देश की अस्मिता के ध्वज को एक बार फिर विश्वमंच पर फहराने लगी है और इसी आशा के साथ, आज समग्र भारत में शतियों-शतियों से सांस्कृतिक धरोहर बनी यह रामकथा 'राम साहित्य कोश' के रूप में आपके सामने रखी जा रही है। इस साहित्य कोश का उद्देश्य केवल भारतीयों के सामने समीक्षा कोश की प्रस्तुति का लक्ष्य नहीं है, अपितु इसके द्वारा यह सिद्ध करना लक्ष्य है कि राष्ट्रीय स्तर पर यह भारतीय संस्कृति, त्याग एवं शीलवादी आस्था बनकर हज़ारों-हज़ारों वर्षों से संचित आर्य संस्कारों की थाती हमें गहन-से-गहन संकटों में कैसे जीवित रहने के लिए संजीवनी शक्ति देती आ रही है। राम साहित्य कोश की इस प्रस्तुति का मन्तव्य भी यही है कि हम एक बार फिर अपनी भारतीय संस्कृति के त्यागवाद, परोपकारवाद, आस्थावादी अस्मिता को सबके सामने प्रस्तुत करके उन्हें इन मूल्यों से जोड़ने के लिए पुनः प्रेरित करें।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 798p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 24.5 X 18.5 X 5
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Editorial Review

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Yogendra Pratap Singh

Author: Yogendra Pratap Singh

योगेन्द्र प्रताप सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्राचार संस्थान में निदेशक, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद में अध्यक्ष तथा भारतीय हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी वैष्णव भक्तिकाव्य में निहित काव्यादर्श एवं काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा हिन्दी आलोचना’, ‘काव्यांग परिचय’, ‘रामचरितमानस के रचनाशिल्प का विश्लेषण’, ‘तुलसी के रचना सामर्थ्य का विवेचन’, ‘तुलसी : रचना सन्दर्भ का वैविध्य’, ‘गोस्वामी तुलसीदास की जीवनगाथा’, ‘कबीर की कविता’, ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’, ‘निबन्ध संरचना और काव्य-चिन्तन’, ‘कबीर सूर तुलसी’, ‘इतिहास दर्शन एवं हिन्दी साहित्य की समस्याएँ’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका’, ‘सर्जन और रसास्वादन : भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी आलोचना : सिद्धान्त और इतिहास’, ‘जन-जन के कवि तुलसीदास’, ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास की समस्याएँ’, ‘काव्यभाषा भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी काव्यशास्त्र के मूलाधार’ (आलोचना); ‘गीति अर्धशती’ (गीतिकाव्य); ‘बीती शती के नाम’, ‘उर्वशी’ (गाथा-गीति); ‘गाधि पुत्र’, ‘सागर गाथा’ (नाट्य-काव्य); ‘टूटते गाँव बनते रिश्ते’, ‘देवकी का आठवाँ बेटा’, ‘पहला क़दम’, ‘अंधी गली की रोशनी’ (उपन्यास); ‘श्रीरामचरितमानस’ (सम्पूर्ण), ‘बालकांड’, ‘अयोध्याकांड’, ‘सुन्दरकांड’, ‘लंकाकांड’, ‘उत्तरकांड’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’ (समग्र सम्पादन-टीका तथा भूमिका सहित), ‘जोरावर प्रकाश’, ‘कृष्ण चन्द्रिका’, ‘करुणाभरण नाटक’ (प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर), ‘घट रामायण तुलसी साहब हाथरस वाले’, ‘प्रयाग की रामलीला’, ‘भारतीय भाषाओं में रामकथा’, ‘Ramkatha in Indian Languages’, ‘रामसाहित्य कोश’—दो खंडों में—‘हिन्दी साहित्य’, भाग-3, ‘हिन्दी साहित्य कोश’ भाग-1 तथा 2, ‘काव्यभाषा : भारतीय पक्ष’, ‘काव्य भाषा : अलंकार रचना तथा अन्य समस्याएँ’—(संयुक्त लेखन)।

कई पत्रिकाओं का सम्पादन—‘अनुसंधान’, ‘विकल्प’, ‘हिन्दी अनुशीलन’ तथा ‘हिन्दुस्तानी’।

निधन : 18 मई, 2020

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