Prayag Ki Ramlila

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Prayag Ki Ramlila

प्रयाग की रामलीला कब से आयोजित हो रही है, इसका साक्ष्य मुगल शासक अकबर काल से मिलने लगता है, किन्तु अर्थ यह नहीं कि प्रयाग की रामलीला अकबर के समय से शुरू हुई थी। प्रयाग में रामलीला का आयोजन मुगल काल के पहले से होता रहा है। जहाँ तक, भारत का प्रश्न है, इस देश में रामलीला ईसा की आरम्भिक शतियों से होती चली आ रही है। इसका सबसे प्राचीन साक्ष्य पंतजलि का महाभाष्य है, जिसमें वानरों तथा राक्षसों एवं उनके दलों के युद्धों का संकेत मिलता है—एते श्वेतमुखा: एते कृष्णमुखा:.....आदि। नाट्य परम्परा में इसके सबसे प्राचीनतम साक्ष्य भास कृत प्रतिमा तथा अभिषेक नाटक के हैं। यही नहीं, यह रामकथा नाट्य तथा लीला के साथ-साथ प्रारम्भ से ही मधुर संगीत परम्परा से भी सम्बद्ध रही है। वाल्मीकि स्वयं कहते हैं, रामकथा में प्रवीण कुशीलव नामक चारण जातियाँ राजदरबारों में इसका तंत्रीस्वरों के साथ गायन करती रही हैं।
इस संदर्भ को केन्द्र में रखते हुए ‘ऐतिहासिकता तथा समसामयिकता’ इन दोनों से समन्वित पुस्तक ‘प्रयाग की रामलीला’ आपके सामने है। आज प्रयाग नगर के प्रत्येक मुहल्लों तथा जनपद की प्रत्येक तहसीलों के विविध कस्बों तथा गांवों में इस समय जिस उत्साह के साथ लीला आयोजन की चमक दिखाई पड़ती है, लगता है, लोक-जीवन की त्यागमयी, आदर्श आचरणमयी तथा कल्याणमयी नयी चेतना फिर से ग्यारह दिनों के लिए जन-जन के बीच परमोन्मेष के साथ उमंगित हो उठी है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 123p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Yogendra Pratap Singh

Author: Yogendra Pratap Singh

योगेन्द्र प्रताप सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्राचार संस्थान में निदेशक, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद में अध्यक्ष तथा भारतीय हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी वैष्णव भक्तिकाव्य में निहित काव्यादर्श एवं काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा हिन्दी आलोचना’, ‘काव्यांग परिचय’, ‘रामचरितमानस के रचनाशिल्प का विश्लेषण’, ‘तुलसी के रचना सामर्थ्य का विवेचन’, ‘तुलसी : रचना सन्दर्भ का वैविध्य’, ‘गोस्वामी तुलसीदास की जीवनगाथा’, ‘कबीर की कविता’, ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’, ‘निबन्ध संरचना और काव्य-चिन्तन’, ‘कबीर सूर तुलसी’, ‘इतिहास दर्शन एवं हिन्दी साहित्य की समस्याएँ’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका’, ‘सर्जन और रसास्वादन : भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी आलोचना : सिद्धान्त और इतिहास’, ‘जन-जन के कवि तुलसीदास’, ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास की समस्याएँ’, ‘काव्यभाषा भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी काव्यशास्त्र के मूलाधार’ (आलोचना); ‘गीति अर्धशती’ (गीतिकाव्य); ‘बीती शती के नाम’, ‘उर्वशी’ (गाथा-गीति); ‘गाधि पुत्र’, ‘सागर गाथा’ (नाट्य-काव्य); ‘टूटते गाँव बनते रिश्ते’, ‘देवकी का आठवाँ बेटा’, ‘पहला क़दम’, ‘अंधी गली की रोशनी’ (उपन्यास); ‘श्रीरामचरितमानस’ (सम्पूर्ण), ‘बालकांड’, ‘अयोध्याकांड’, ‘सुन्दरकांड’, ‘लंकाकांड’, ‘उत्तरकांड’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’ (समग्र सम्पादन-टीका तथा भूमिका सहित), ‘जोरावर प्रकाश’, ‘कृष्ण चन्द्रिका’, ‘करुणाभरण नाटक’ (प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर), ‘घट रामायण तुलसी साहब हाथरस वाले’, ‘प्रयाग की रामलीला’, ‘भारतीय भाषाओं में रामकथा’, ‘Ramkatha in Indian Languages’, ‘रामसाहित्य कोश’—दो खंडों में—‘हिन्दी साहित्य’, भाग-3, ‘हिन्दी साहित्य कोश’ भाग-1 तथा 2, ‘काव्यभाषा : भारतीय पक्ष’, ‘काव्य भाषा : अलंकार रचना तथा अन्य समस्याएँ’—(संयुक्त लेखन)।

कई पत्रिकाओं का सम्पादन—‘अनुसंधान’, ‘विकल्प’, ‘हिन्दी अनुशीलन’ तथा ‘हिन्दुस्तानी’।

निधन : 18 मई, 2020

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