Sriramcharit Manas : Pancham Sopan Sundarkand

Edition: 2015, Ed. 8th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Sriramcharit Manas : Pancham Sopan Sundarkand
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तुलसी कृत सुन्दरकांड के कथा नायक हनुमान हैं, परन्तु वह लगते नहीं। कवि सुन्दरकांड के माध्यम से श्रीराम के माहात्म्य, उनके प्रति भक्ति तथा प्रपत्ति एवं शरणागति भाव को व्यंजित करना चाहता है। इस दृष्टि से, सुन्दरकांड में आए हनुमान, सीता, रावण एवं विभीषण के चरित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो विभीषण का स्थान सर्वोपरि है। सुन्दरकांड के इस विभीषण का चरित्र ऐतिहासिक नहीं, स्वयं तुलसीदास का अपना निजी भोगा हुआ उपेक्षित व्यक्तित्व है। विभीषण एवं तुलसी दोनों श्रीराम की शरणागति में ही जीवन की सार्थकता प्राप्त करते हैं। यदि और स्पष्ट ढंग से कहना चाहें तो यह भी कह सकते हैं कि इस विभीषण का पर्याय तुलसीयुगीन सम्पूर्ण निराश्रित जनसमूह है।

तुलसी सुन्दरकांड में विभीषण का विद्रावक तथा संवेदनशील व्यक्तित्व निर्मित करके इस कथा का मुख ग़रीब एवं असहाय जनता की ओर मोड़ देते हैं। इसीलिए, इस सुन्दरकांड में कवि अपनी सम्पूर्ण रचनात्मक ऊर्जा न हनुमान की शक्ति एवं बल से सम्बद्ध करता है, न रावण के प्रति अन्याय और आक्रोश में लगाता है, साथ ही, उसे न वह श्रीराम की प्राणप्रिया सीता की विरह पीड़ा से ही जोड़ता है; वह पूरी तरह से सजग तथा संवेदनशील होकर आश्रयविहीन विभीषण को अपना भावात्मक समर्पण देकर उसे सार्थक बनाने की चेष्टा करता है। इस सुन्दरकांड के कवि तथा उसकी कविता की यही भव्यता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 8th
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Yogendra Pratap Singh
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Yogendra Pratap Singh

Author: Yogendra Pratap Singh

योगेन्द्र प्रताप सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्राचार संस्थान में निदेशक, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद में अध्यक्ष तथा भारतीय हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी वैष्णव भक्तिकाव्य में निहित काव्यादर्श एवं काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा हिन्दी आलोचना’, ‘काव्यांग परिचय’, ‘रामचरितमानस के रचनाशिल्प का विश्लेषण’, ‘तुलसी के रचना सामर्थ्य का विवेचन’, ‘तुलसी : रचना सन्दर्भ का वैविध्य’, ‘गोस्वामी तुलसीदास की जीवनगाथा’, ‘कबीर की कविता’, ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’, ‘निबन्ध संरचना और काव्य-चिन्तन’, ‘कबीर सूर तुलसी’, ‘इतिहास दर्शन एवं हिन्दी साहित्य की समस्याएँ’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका’, ‘सर्जन और रसास्वादन : भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी आलोचना : सिद्धान्त और इतिहास’, ‘जन-जन के कवि तुलसीदास’, ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास की समस्याएँ’, ‘काव्यभाषा भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी काव्यशास्त्र के मूलाधार’ (आलोचना); ‘गीति अर्धशती’ (गीतिकाव्य); ‘बीती शती के नाम’, ‘उर्वशी’ (गाथा-गीति); ‘गाधि पुत्र’, ‘सागर गाथा’ (नाट्य-काव्य); ‘टूटते गाँव बनते रिश्ते’, ‘देवकी का आठवाँ बेटा’, ‘पहला क़दम’, ‘अंधी गली की रोशनी’ (उपन्यास); ‘श्रीरामचरितमानस’ (सम्पूर्ण), ‘बालकांड’, ‘अयोध्याकांड’, ‘सुन्दरकांड’, ‘लंकाकांड’, ‘उत्तरकांड’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’ (समग्र सम्पादन-टीका तथा भूमिका सहित), ‘जोरावर प्रकाश’, ‘कृष्ण चन्द्रिका’, ‘करुणाभरण नाटक’ (प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर), ‘घट रामायण तुलसी साहब हाथरस वाले’, ‘प्रयाग की रामलीला’, ‘भारतीय भाषाओं में रामकथा’, ‘Ramkatha in Indian Languages’, ‘रामसाहित्य कोश’—दो खंडों में—‘हिन्दी साहित्य’, भाग-3, ‘हिन्दी साहित्य कोश’ भाग-1 तथा 2, ‘काव्यभाषा : भारतीय पक्ष’, ‘काव्य भाषा : अलंकार रचना तथा अन्य समस्याएँ’—(संयुक्त लेखन)।

कई पत्रिकाओं का सम्पादन—‘अनुसंधान’, ‘विकल्प’, ‘हिन्दी अनुशीलन’ तथा ‘हिन्दुस्तानी’।

निधन : 18 मई, 2020

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