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Pascual Duarte Ka Parivar-Paper Back

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9788126701049
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स्पेन के युगान्तरकारी कथाकार कामीलो ख़ोसे सेला के ‘पास्कुआल दुआर्ते का परिवार’ को वर्ष 1989 के ‘नोबेल साहित्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।

यह उपन्यास एक ऐसे सांस्कृतिक माहौल में सामने आया जब स्पेनी पाठक अपनी सामाजिक संघटना के किसी ऐसे पुनर्लेखन के लिए क़तई तैयार नहीं था जो कैथोलिक स्पेन की ‘शुद्धता’, परिवार की ‘पवित्रता’, सामाजिक वर्गीकरण के ‘परोपकारी स्वभाव’ जैसी परिभाषाओं के विरुद्ध हो। लेकिन सेला के उपन्यास ने यूरोपीय टूरिस्टों को निर्यात किए जानेवाले फ़्राको के पौराणिक स्पेन की अतिकल्पनाओं का बख़ूबी पर्दाफ़ाश किया। मध्यकालीन दुर्ग, पैर पटकते हुए बंजारा नर्तक-नर्तकियाँ, सजीली पोशाकों में तने हुए बुल फ़ाइटर, ख़ुशहाल परिवार, गोद में शिशु सँभाले माता मेरी जैसी ममतामयी माँएँ—इन सबका पास्कुआल दुआर्ते जैसे संघर्षरत अनेक लोगों के दैनिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं था। हालाँकि ‘पास्कुआल दुआर्ते’ का स्पेन परम्परावादी और पौराणिक स्पेन नहीं है, लेकिन उसकी भाषा में स्पेन की परम्परा और स्पेन के गाँवों-शहरों की मिट्टी की गन्ध है। इसीलिए उसमें असीम शाब्दिक ऊर्जा है। संक्षेप में, ‘पास्कुआल दुआर्ते’ का निष्ठुर यथार्थवाद तत्कालीन स्पेनी जीवन की भयावहता का ज़बर्दस्त खुलासा करता है। यही कारण है कि स्पेनी साहित्य में सेरवांतेस के महान उपन्यास ‘दोन किख़ोते’ के बाद ‘पास्कुआल दुआर्ते’ को ही सबसे ज़्यादा पाठक मिले हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Sonya Surabhi Gupta
Editor Not Selected
Publication Year 1996
Edition Year 1996, Ed. 1st
Pages 170p
Price ₹60.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12.5 X 1
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Author: Camilo Khose Cela

कामीलो ख़ोसे सेला

स्पेन के नोबेल पुरस्कार विजेता उपन्यासकार कामीलो ख़ोसे सेला का जन्म 11 मई, 1916 को हुआ था। स्पेनी गृहयुद्ध के बाद के वर्षों में जो लेखक सामने आए, उनमें सेला सर्वप्रमुख हैं और स्पेनी ही नहीं, बल्कि विश्व-साहित्य में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने कई उपन्यासों की रचना की है, जिनमें सर्वाधिक चर्चित हैं : ‘ला कैमिलिया डी पास्कुआल दुआर्ते’ (1942) और ‘ला कोलमेना’ (1951)। ‘ला कैमिलिया डी पास्कुआल दुआर्ते’ में फाँसी का इन्तज़ार करते एक ख़ूनी की जीवन-गाथा उसी की ज़बानी प्रस्तुत की गई है। ला कोलमेना उनका सशक्ततम उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में स्पेनी गृहयुद्ध के चार वर्ष बाद माद्रीद की ज़िन्दगी के तीन दिनों का चित्रण है। सेला ने इस उपन्यास में गृहयुद्धोत्तर स्पेनी समाज की दरिद्रता और पतनशीलता का चित्रण करने के साथ-साथ समाज-कल्याण के झूठे दम्भ का पर्दाफ़ाश किया है।

उपन्यासों के अतिरिक्त सेला के कई कहानी-संग्रह, यात्रा-वृत्तान्त और निबन्धों के संग्रह प्रकाशित हुए हैं।

सेला की संकलित रचनाएँ 1972 में आठ खंडों में प्रकाशित हुई थीं।

1956 में सेला ने स्पेन की एक सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका ‘पैपेलेस डी सोन आरमेडेन्स’ की शुरुआत की थी। इस पत्रिका का सम्पादन वे स्वयं करते थे।

निधन : 17 जनवरी, 2002

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