P. Vidyaniwas Mishra Sanchayita

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P. Vidyaniwas Mishra Sanchayita
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पंडित विद्यानिवास मिश्र के साहित्य का बहुआयामी विस्तार मुख्यत: निबन्ध-विधा में ही फलीभूत हुआ है। इस विधा में जितना काम उन्होंने किया है और इस विधा से जितना बड़ा काम उन्होंने लिया है, उतना हिन्दी में शायद ही किसी और से सम्भव हुआ हो। देश-दुनिया, सभ्यता-समाज, धर्म-संस्कृति, इतिहास, राजनीति, भाषाशास्त्र, साहित्यशास्त्र, कला समेत सभी कुछ को उन्होंने निबन्ध में समेटा है।

एक लेखक के रूप में उन्होंने अपनी निष्ठा सदैव पाठक के प्रति रखी। वह पाठक जिसे उन्होंने बल-विद्या-बुद्धि किसी भी मामले में अपने से घटकर नहीं माना। उनका पाठक उन्हीं की तरह उनके गाँव-घर का है, और अपनी व्याप्ति में पूरे संसार का। उनके निबन्धों में जो व्यक्तित्व व्यंजित हुआ है, वह जितना अपना है, उतना ही उनके पाठक का भी। एक नितान्त गँवई व्यक्तित्व जिसके लिए जीव-जन्तु, नदी, पेड़, पहाड़ ऋतु का भी अपना व्यक्तित्व है।

विद्या बोझ न बन जाए, इसके प्रति उनकी प्रतिश्रुति इतनी प्रबल है कि समीक्षा, साहित्येतिहास और काव्यशास्त्र आदि क्षेत्रों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के बावजूद उन्होंने आग्रहपूर्वक अपनी पहचान साहित्य के एक विद्यार्थी की ही बनाए रखी। सच तो यह है कि साहित्य में सैद्धान्तिक ही नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी सहृदयको, ‘सामाजिकको, ‘सहृदय सामाजिकको जो सम्मान पं. विद्यानिवास मिश्र ने, उनके साहित्य-कर्म ने दिया, वह अभूतपूर्व है।

उनके समग्र रचना-कर्म से इस संचयन में निबन्धों के अलावा उनके रचना-संसार के अल्पज्ञात और अज्ञात कोने-अँतरों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास भी किया गया है। पाठक यहाँ कविता, काव्यान्तर, ध्वनि-रूपक, व्यंग्य-बन्ध, साक्षात्कार, संवाद, व्याख्या, अनुवाद और उनके पत्र-व्यवहार की भी झलक पा सकेंगे। साथ ही विद्वान सम्पादकगण के अथक परिश्रम से यह भी सम्भव हुआ है कि पंडित जी की विराट निबन्ध-सम्पदा का हर रंग, हर रूप इसमें मुखर हो सके।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 516p
Translator Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3
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Editorial Review

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Vidhyaniwas Mishra

Author: Vidhyaniwas Mishra

डॉ. विद्यानिवास मिश्र

जन्म : 28 जनवरी, 1926; गाँव—पकड़डीहा, ज़िला—गोरखपुर। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में, माध्यमिक शिक्षा गोरखपुर में, संस्कृत की पारम्परिक शिक्षा घर पर और वाराणसी में। 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए.। हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्वर्गीय राहुल की छाया में कोश-कार्य, फिर पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी की प्रेरणा से आकाशवाणी में कोश-कार्य, विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों में सेवा, गोरखपुर विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालयों में क्रमशः अध्यापन संस्कृत और भाषा-विज्ञान का। 1960-61 और 1967-68 में कैलिफ़ोर्निया और वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में अतिथि अध्यापक। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक; काशी विद्यापीठ तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति-पद से निवृत्त होने के बाद कुछ वर्षों के लिए नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली के सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘शेफाली झर रही है’, ‘गाँव का मन’, ‘संचारिणी’, ‘लागौ रंग हरी’, ‘भ्रमरानन्द के पत्र’, ‘अंगद की नियति’, ‘छितवन की छाँह’, ‘कदम की फूली डाल’, ‘तुम चन्दन हम पानी’, ‘आँगन का पंछी और बनजारा मन’, ‘मैंने सिल पहुँचाई’, ‘साहित्य की चेतना’, ‘बसन्त आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’, ‘परम्परा बन्धन नहीं’, ‘कँटीले तारों के आर-पार’, ‘कौन तू फुलवा बीननि हारी’, ‘अस्मिता के लिए’, ‘देश, धर्म और साहित्य’ (निबन्ध-संग्रह); ‘दि डिस्क्रिप्टिव टेकनीक ऑफ़ पाणिनि’, ‘रीतिविज्ञान’, ‘भारतीय भाषा-दर्शन की पीठिका’, ‘हिन्दी की शब्द-सम्पदा’ (शोध); ‘पानी की पुकार’ (कविता-संग्रह); ‘रसखान रचनावली’, ‘रहीम ग्रन्थावली’, ‘देव की दीपशिखा’, ‘आलम ग्रन्थावली’, ‘नई कविता की मुक्तधारा’, ‘हिन्दी की जनपदीय कविता’ (सम्पादित)।

निधन : 14 फ़रवरी, 2005

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